तन्हाई और रात

तन्हाई और रात
सुलगती सांसे ,
दहकते अंगार ,
मोम के टीले पर बसी ,
तन्हाई और ये रात.
अंगूर ,भींगी-भींगी खुशबू ,
अल्हड ,मदमस्त ,बेकाबू ,
नशे के गोद में बैठी ,
तन्हाई और ये रात.
आँखों की डोर ,
कबूतरों का शोर ,
चाहत की अंगड़ाई में सनी ,
तन्हाई और ये रात. .
बसन्त ,ये बारिष,
यौवन का तूफ़ान ,
जलती आग में घी बनी ,
तन्हाई और ये रात.
चल ,यूँ ही चलते रहो ,
गीली जमीन पर बड़ते रहो ,
बेकाबू हुए आकाश में ,
तन्हाई और ये रात.

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