बड़ी बेआबरू होकर कुचे से आज निकला
(अभिषेक मनु सिघवी पर एक कविता .पसंद आये तो अपने दाद जरुर दे )
उसके ठहाको के शोर में दबा तूफ़ान था ,
जिसकी आहट से ही उसका जनाज़ा निकला .
रातभर करता रहा बखान अपनी जिन्दगी का ,
सुबह अख़बार में उसके खुदखुशी का खबर निकला .
बैठ कर बादलो पर फिरता था आसमान में ,
बारिश आई तो बन के नाली का कीड़ा निकला .
शब्दों के सियासत से शीर्ष पर पंहुचा ,
बड़ी बेआबरू होकर कुचे से आज निकला .
घुमा करता था सच की लिवाज़ पहन कर ,
या खुदा ! आज वही झूठ का घरोंदा निकला .
बैठा था जिस तख़्त पर वर्षो से वो ,
आज वही बन कर रेत का बुरादा निकला .
रंजन मिश्र ...............रंजन मिश्र
उसके ठहाको के शोर में दबा तूफ़ान था ,
जिसकी आहट से ही उसका जनाज़ा निकला .
रातभर करता रहा बखान अपनी जिन्दगी का ,
सुबह अख़बार में उसके खुदखुशी का खबर निकला .
बैठ कर बादलो पर फिरता था आसमान में ,
बारिश आई तो बन के नाली का कीड़ा निकला .
शब्दों के सियासत से शीर्ष पर पंहुचा ,
बड़ी बेआबरू होकर कुचे से आज निकला .
घुमा करता था सच की लिवाज़ पहन कर ,
या खुदा ! आज वही झूठ का घरोंदा निकला .
बैठा था जिस तख़्त पर वर्षो से वो ,
आज वही बन कर रेत का बुरादा निकला .
रंजन मिश्र ...............रंजन मिश्र
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