जातिवाद और आरक्षण (विश्लेषण -2 )
जातिवाद की अवधारणा समाज के उत्थान के लिए ,समाज के विप्रो ने दिया था न की ब्राह्मणों ने . जातिवाद skill and innovation पर आधारित हैं . एक उदारण लेते हैं - एक लोहार जो लोहा का व्यापार करता है वो जब अपना होश संभालेगा तभी से लौह-व्यापार की बारीकी समझने लगेगा .जब वो जवान होगा तब-तक वो M.TECH and MBA दोनों से ज्यादा ज्ञान लौह-व्यापार में पा चूका होगा. .Learning with earning system .अब वो इस व्यापार को नया आयाम देगा . अब वो जिन्दगी जो भी सीखेगा वो नया होगा उस व्यापार में जो नयी पीडी के लिए विरासत होगा .इसका बेटा जब जवान होगा तब तक वो कई पीडियो का ज्ञान ले चूका होगा .ये जातिवाद एक महान परम्परा हैं जिससे अंग्रेजो ने नष्ट किया . अपनी जाति,धर्म ,मिटटी और देश को पूजने को पोगा-पंथी का नाम दिया ,अपने व्यापार को स्थापित करने के लिए क्योंकि वो skills में हमारे आगे कही नहीं टिकते थे और बिना जातिवाद को ख़त्म किये वो इस system को ख़त्म नहीं कर सकते थे . इसलिए उन्होंने जातिओ में उच्च -नीच का भेद पैदा किया . लोगो में भेद-भाव कि भावना भरी .
Ranjan Mishra
जातिवाद और आरक्षण (विश्लेषण -1 )
लोगो का कहना हैं की तथा-कथित बड़ी जातियों (मैं किसी को बड़ा और छोटा नहीं मानता ) के लोग दलितों से गंदे (मल,गुह ) उठवाते थे .मेरा पूछना हैं की भारत में घर के अंदर शौच करने की प्रथा कब आई ? भारत में तो लोग शौच के लिए खेतो में जाया करते थे, फिर गंदे उठाने का सवाल ही कहाँ पैदा होता है ? यह तो अंग्रेजो ने घर में शौच करना शुरू किया और करवाया . जब घर में लोग शौच करने लगे तब मल या गंदे उठाने की प्रथा शुरू हुई .उस समय के अंग्रेजों (जो बहुत बुद्धिमान थे ) ने दलितों से मल उठवाना शुरू किया और फिर ये प्रथा बन गयी . पहले गरीब दलित केवल सफाई-कर्मी थे गुलाम नहीं . सफाई- कर्मी आज भी हैं और किसी न किसी को तो बनना ही है .
@Ranjan Mishra

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