Dr. Madhusudan
जाति एक ब्रिटीश कुचेष्टा”
अनुवाद: डॉ. मधुसूदन
एक पुस्तक अकस्मात हाथ लगी।बस, ले लीजिए उसे आप यदि ले सकते हैं तो। नाम है, , “Castes of Mind: Colonialism and Making of British India” अर्थात “मानसिक जातियां : उपनिवेशवाद और ब्रिटीश राज का भारत में गठन” और लिखी गयी है, एक इतिहास और मानव विज्ञान के अमरिकन प्रोफेसर Nicholas D. Durks द्वारा।
लेखक तर्क देकर पुष्टि भी करते हैं, कि वास्तविक वे अंग्रेज़ ही हैं, जिन्होंने जाति व्यवस्था के घृणात्मक रूपका आधुनिक आविष्कार किया, और कपटपूर्ण षड-यंत्र की चाल से जन-मानस में, उसे रूढ किया। आगे लेखक कहते हैं कि, जाति भेद, जिस अवस्था में आज अस्तित्व में है, उसका अंग्रेज़ो के आने से पहले की स्थिति से , कोई समरूपता (सादृश्यता ) नहीं है।
कुछ विषय से हटकर यह भी कहा जा सकता है, कि, उन्होंने यही कपट अफ्रिकन जन-जातियों के लिए भी व्यवहार में लाया था। उद्देश्य था; वंशजन्य भेदों को बढा चढाकर प्रस्तुत करना, प्रजा जनों को उकसाना, विभाजित करना, आपस में भीडा देना, और उसी में व्यस्त रखना। इसी प्रकार, अपने राज की नीवँ पक्की करना।
जिस अतिरेकी, और पराकोटि की मात्रा में, पश्चिमी समाज के जन-मानस में यह जातिभेदात्मक (जातिव्यवस्था नहीं?) अवधारणा घुस चुकी है, यह वामपंथियों की आत्मघाती, कुनीतियों के कारण ही है; यह भी इसी से स्पष्ट हो जाता है। {इस अनुवादक को इसकी, अनेक बार प्रतीती हो चुकी है। }
वे इसका, बढा चढाकर, अतिरंजित घृणात्मक वर्णन करते हैं, और साथ में, इस मिथ्या धारणा का प्रचार, कि हिंदू (धर्म) माने केवल अंतर्जातीय वैमनस्य, हिंदुओं के पास दूसरा कोई मौलिक या आध्यात्मिक ज्ञान नहीं था या है।
निश्चित रूपसे, यह एक ढपोसले के अतिरिक्त कुछ भी नहीं, और यह षड-यंत्र भी , कुछ रिलीजनों के (धर्मों के नहीं) कूटनैतिक उद्देश्यों से ही, संचलित है। ऐसी, कूट-नैतिक धारणाएं पश्चिमी (रिलीजन वाले) भारत में फैलाना चाहते हैं।
आगे लेखक कहता है,; हिंदु सजग हो जाएं, और इस फंदे में ना फंसे।
मैं ऐसा विद्वत्तापूर्ण लेखन -कुछ, ब्रिटीश और अमरिकन विद्वानों द्वारा ही, देख रहा हूं, जो सच्चाई के प्रति निष्ठा रखते हैं, और सही अर्थ में सत्य शोधक हैं। ऐसा लेखन, ब्रिटीशरों की कुचेष्टा ओं पर,जो जातियों के बीच, परस्पर घृणा को उत्तेजित करती थी, जो आज भी, दिखाई देती है, उस पर प्रकाश फेंकता है। सोचिए,==>किस कारण से पश्चिमी प्रोफेसर इस काममें इतनी सामग्री ढूंढ सकते हैं, जिस से ऐसी (पूरी) पुस्तकें लिखी जा सकती है; but Indian scholars keep groping in the dark? पर भारतीय विद्वान (?) अंधेरे में लडखडा कर टटोलते रह जाते हैं?
या. कहीं, ऐसा तो नहीं कि, बहुतेरे इतिहासज्ञ वाम पंथी दल के होने के कारण इस दिशा में जाना ही नहीं चाहते, कि डरते हैं, कि, यदि गए, और सत्य हाथ लगा तो फिर उनके अपने हिंदुत्व के विषयमें कुप्रचार के धंधे में सेंध लग जाएगी।
विशेष : निम्न समीक्षाएं, कुछ विद्वानों के शब्दोमें, बिना अनुवाद :
’…..Massively documented and brilliantly argued,- “Castes of Mind” – is a study in true contrapuntal ( प्रचलित मान्यता से अलग ) interpretation.’
(Edward W. Said )
’……..Nevertheless, this groundbreaking work of interpretation demands a careful scholarly reading and response.’
(John F. Riddick)
Central Michigan Univ. Lib., Mt. Pleasant.
==>Dirks (Prof. history and anthropology, Columbia Univ.) elects to support the (latter) view.’Adhering to the school of Orientalist thought promulgated by Edward Said and Bernard Cohn, Dirks argues that ==>British colonial control of India for 200 years pivoted on its manipulation of the caste system’<==
—-From Library Journal
’मधुसूदन उवाच’ इस समीक्षा का केवल अनुवादक है।

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