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Showing posts from September, 2012

अगर सिकंदर को पहले रोका होता

अगर  सिकंदर  को पहले रोका होता , तो आज हमारा खून साफ़ होता ? लंगोट नीलाम न होता , और मस्तक गुलाम न होता , हम हर बार देर से जागे , लेकिन तब तक हमारा मान-मर्दन हो चूका होता , हमारी धरती लूट चुकी होती , और जनता टूट  चुकी होती , अगर  सिकंदर  को पहले रोका होता , तो आज हमारा खून साफ़ होता ? हम हर बार लड़े हैं , हम हर बार जीते हैं , लेकिन तब जब कुछ नहीं बचा होता , यह कविता कुंठित नहीं , चेतावनी हैं , तुम आज फिर सो रहे हो , भोग -विलाश में खो रहे हो , एक अँगरेज़ फिर व्यापार करने आया हैं , कल मत कहना कोई तो चेताया होता , भविष्य के खतरे को समझाया होता हैं , अगर  सिकंदर  को पहले रोका होता , तो आज हमारा खून साफ़ होता ?    

सब्जी मंडी या की रंडी हो गयी हैं जनतंत्र ?

सब्जी मंडी या की रंडी हो गयी हैं जनतंत्र ? विदेशी लूटेरों की कुंजी हो गयी हैं जनतंत्र , या के  सत्ता के पहलवानों की पूंजी हो गयी हैं जनतंत्र ? बड़े -बड़े महलों के आगे झुंगी हो गयी हैं जनतंत्र , या बचपन के मदारी की डुगडुगी हो गयी हैं जनतंत्र ? सब्जी मंडी या की रंडी हो गयी हैं जनतंत्र ? ताकत और पैसे की संगी हो  गयी है जनतंत्र , या मियां हलीम की लुंगी हो गयी हैं जनतंत्र ? हिमालय के आगे छोटी हो गयी हैं जनतंत्र , या भारत के विद्वानों की पोथी हो गयी हैं जनतंत्र ? कुते की बोटी हो गयी हैं जनतंत्र , या पहलवानों की लंगोटी हो गयी हैं जनतंत्र ? सब्जी मंडी या की रंडी हो गयी हैं जनतंत्र ?

गाज़ियाबाद में लाशें बिछी हैं , आज वो कहाँ हैं ?

गाज़ियाबाद  में लाशें बिछी हैं , आज वो कहाँ हैं ? जिन्हें फ़िक्र थी मानवता , जो जीते थे जनतंत्र के लिए , सेकुलर होने की रोटी खाने वाले , आज वो कहाँ हैं ? गाज़ियाबाद  में लाशें बिछी हैं , आज वो कहाँ हैं ? जिन्हें अन्याय ,अत्याचार पचता नहीं , गुजरात पर जिनके कलम थकते नहीं , असम के कलंक पर मौन रहने वालों , आज आत्मा की आवाज़ कहाँ हैं ? गाज़ियाबाद  में लाशें बिछी हैं , आज वो कहाँ हैं ? नहरें मौत की कब्रगाह बनी हैं , और औरतें हवस की शिकार , आग के हवाले हुए हैं नागरिक और सिपाही , दहशतगर्दो  को समझाने वाले , सच का झंडा उठाने वाले , आज वो कहाँ हैं ? गाज़ियाबाद  में लाशें बिछी हैं , आज वो कहाँ हैं ?