सब्जी मंडी या की रंडी हो गयी हैं जनतंत्र ?
सब्जी मंडी या की रंडी हो गयी हैं जनतंत्र ?
विदेशी लूटेरों की कुंजी हो गयी हैं जनतंत्र ,
या के सत्ता के पहलवानों की पूंजी हो गयी हैं जनतंत्र ?
बड़े -बड़े महलों के आगे झुंगी हो गयी हैं जनतंत्र ,
या बचपन के मदारी की डुगडुगी हो गयी हैं जनतंत्र ?
सब्जी मंडी या की रंडी हो गयी हैं जनतंत्र ?
ताकत और पैसे की संगी हो गयी है जनतंत्र ,
या मियां हलीम की लुंगी हो गयी हैं जनतंत्र ?
हिमालय के आगे छोटी हो गयी हैं जनतंत्र ,
या भारत के विद्वानों की पोथी हो गयी हैं जनतंत्र ?
कुते की बोटी हो गयी हैं जनतंत्र ,
या पहलवानों की लंगोटी हो गयी हैं जनतंत्र ?
सब्जी मंडी या की रंडी हो गयी हैं जनतंत्र ?
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