हिंदू का घर जला हैं , मुस्लिम का आशियाना उजड़ा हैं
आइए मिलकर फिर विश्वास जगाते हैं ,
दुनियां को और बेहतर बनाते हैं ,
हलीम चाचा गाड़ी चलाते थे ,
गुड्डू भैया सब्जी की ढेली लगाते थे ,
इन दोनों ने अपने संतान को खोया हैं ,
वापिस तो नहीं आएंगे इनके लाड़ले ,
आइए हम इनके दुखो पर मलहम लगाते हैं ,
आइए मिलकर विश्वास जगाते हैं ,
दुनियां को और बेहतर बनाते हैं ।।

दोषी न मोटा भाई हैं न मूला जी ,
दोष हम सब के समझदारी का हैं ,
वो महलों में बैठ विष बीते हैं ,
दोष उन बीजों के पहरेदारी का हैं ,
हम सींचते हैं उनके नफ़रत को ,
रोज विषबेल में खाद पानी डालते हैं ,
उनके न घर जले , न मातम पसरा आंगन में ,
दोष हम सब के नादानी का हैं ,
आइए मिलकर फिर विश्वास जगाते हैं ,
दुनियां को और बेहतर बनाते हैं ।।

Copyright@Sankalp Mishra

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