मेरे बिस्तर के ठीक नीचे मेरा कंकाल निकला ,
क़त्ल करने वालों के हाथों में मेरा हथियार निकला .
ख़ुदा जानता हैं मेरा मुझसे कैसा रिश्ता था ,
मेरा जेहन मेरे दुश्मनों का जिगरी यार निकला .
खुद की जुबा से बेहतर नहीं बाहरी दुश्मन ,
जब निकला मेरे आस्तीन से ही सांप निकला .
अदालत अमादा हैं सज़ा देने को मगर किसको ?
मैं जिन्दा हूँ मगर मेरे लाश से खंजर निकला .
क़त्ल करने वालों के हाथों में मेरा हथियार निकला .
ख़ुदा जानता हैं मेरा मुझसे कैसा रिश्ता था ,
मेरा जेहन मेरे दुश्मनों का जिगरी यार निकला .
खुद की जुबा से बेहतर नहीं बाहरी दुश्मन ,
जब निकला मेरे आस्तीन से ही सांप निकला .
अदालत अमादा हैं सज़ा देने को मगर किसको ?
मैं जिन्दा हूँ मगर मेरे लाश से खंजर निकला .
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