अकेला हूँ , इन पहाड़ो के बीच.
जब हवाएं सनसनाती हैं ,
रेत  आसमान छेक लेते हैं ,
तब आभास होता हैं ,
अकेला हूँ , इन पहाड़ो के बीच.

धूप जब आग बनता हैं ,
चेहरा गोरा से काला पड़ता हैं ,
तब आभास होता हैं ,
अकेला हूँ , इन पहाड़ो के बीच.

जब बजती हैं घंटी ,
शांति भंग हो जाती हैं ,
तब आभास होता हैं ,
अकेला हूँ , इन पहाड़ो के बीच.

पेड़ के नाम पर बबूल दीखते हैं ,
और जमीन की जगह रेत ,
तब आभास होता हैं ,
अकेला हूँ , इन पहाड़ो के बीच.

जब प्यास लगती हैं ,
और पानी नहीं मिलता ,
तब आभास होता हैं ,
अकेला हूँ , इन पहाड़ो के बीच.

आंसू आँखों में ही सूख जाते हैं ,
दर्द कुह्कते रहते हैं ,
तब आभास होता हैं ,
अकेला हूँ , इन पहाड़ो के बीच.

रात को जब नींद खुलती,
बत्ती जलते हुए मिलती है ,
तब आभास होता हैं ,
अकेला हूँ , इन पहाड़ो के बीच.
Copyright@Sankalp Mishra

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