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ब्राह्मण की आत्मकथा -२

RANJAN MISHRA ब्राह्मण की आत्मकथा -२ ब्राह्मणों ने नीव खोदी अपनी , फिर उसमे मठा डाला , और फिर चीनी , ... वो सारे उपाय किये , जिससे सर्वनाश हो सके, खुद के कुटुंब का , परिवार का , और हस्ती मिट सके सत्ता से , समाज से , और संस्कृति से . आपस की लड़ाई में , शूद्रो को राजसत्ता दिए , आरक्षण दिए , संरक्षण दिए , और चाबुक थमाया हाथो में , परिणाम आज बीबी की कमाई से , घर चलाते है और हाथियो के तलवे चाटते है , दिन-रात मेहनत कर के , रात को आधा पेट भर पाते है , बेटी,बहन और बीबी घर से बाहर जाती है और शुद्र मान -मर्दन करते है , सत्ता अब सपना है , अपमान धरोहर , अन्याय सच्चाई हैं स्वाभिमान मृग-तृष्णा .

आरक्षण ने क्या दिया ?

आरक्षण ने क्या दिया ? हमे बताओ ना, ये इतना जरुरी क्यों है ? समझाओ ना , तुमने लगाया था इसे विकास के लिए , स्वाभिमान से जी सको ,इस अधिकार के लिए , लेकिन तुमने पाया क्या ? दिखाओ ना , अन्याय हुआ है तेरे साथ ,मैं मानता हूँ तुम्हे भी आगे जाने की ललक हैं ,मैं जनता हूँ आरक्षण तेरी मांग पूरा कर पाया क्या ? बतलाओ ना आज तुम और गरीब हो गए हो , आज तेरे बंधुओं ने ही खाई खोदी हैं , वो लपक लेते है सब कुछ ऊपर से ही , और तुम खाई से देख भी नहीं पाते , तेरी भूख मिट पाई क्या ? देश को बताओ ना , मै बताता हूँ , नहीं . तेरी भूख नहीं मिटी, उलटे तुझे रोटी देने वाले भी दलिद्र हो गए , आरक्षणरूपी राक्षस ने सब कुछ लूट लिया , तुम्हारा भी ,हमारा भी आज सबकुछ भेट चढ़ गया हैं , धन-देवता के , तुम्हारा भी ,हमारा भी . लेकिन अब हम क्या करे ? वो आज भी तेरे तावे पर ही रोटी सकते है , और तेरे कुएं का पानी पीते हैं , क्या तुम विरोध कर पाओगे ? मेरा हौसला बढाओ ना , हम साथ लड़ेगे ,इन दानवों से इन आरक्षण के रखवालो से , हम जीत जाएगे ,तुम साथ तो आओ ना .

सच का सामना कर पाओगे ?

सच का सामना कर पाओगे ? झूठ बोलना बचपन से सिखा है , खून बहाना पड़ता है , व्यवस्था बदलने के लिए , शांति के लिए , सकून के लिए क्या यह कर पाओगे ? सच का सामना कर पाओगे ? अहिसा एक झूठ हैं , यह एक छलावा है , सत्ता इसे बढावा देती हैं , लूट के बचाव के लिए , फलने फूलने के लिए खाद देती है, गाँधी नहीं ,सुभाष चाहिए क्या ये कह पाओगे ? सच का सामना कर पाओगे ? अभिनेत्रियाँ रंडी होती है , नेता भारत माँ के दलाल , व्यवसायी मुनाफे के गुलाम , अफसर चापलूस और जनता नपुंसक लेकिन क्या तुम हिम्मत कर पाओगे ? सच का सामना कर पाओगे ? जिंदगी बस हारे हो तुम , गलत आदतों के गुलाम हो , तुम्हे दुसरे की फ़िक्र नहीं , स्वार्थी और निकम्मे हो , क्या तुम मुखौटा उठा पाओगे ? सच का सामना कर पाओगे ? तुम चाहते थे उसे , पागल थे तुम उसके लिए , दिन-रात उसी की बात करते थे , जान तक देने को तैयार थे तुम , लेकिन आज भी ये बता पाओगे ? सच का सामना कर पाओगे ? तुने खेला है भावनाओ से , कई लोगो का इस्तेमाल किया है , तुम मोहरा भी बने हो कई लोगो के , दुत्कारे गए हो कई दरवाजे से , और कई लोगो को तुने पिटा है और कई बार लात खाई हैं ,कई जगह लेकिन ये ...

ये मैं जानता हूँ .

फूलों को देख कर , क्यों बने है लोग चकोर , ये मैं जानता हूँ . सत्ता के गलियारों में , जूता लेकर चड़ने वालों को , मैं जानता हूँ सच का झंडा उठाये लोग, कैसे सूरजमुखी बन जाते है , ये मैं जानता हूँ . नौ शेरों पर,दस बकरियां कैसे राज करती है , ये मैं जानता हूँ . जनतंत्र ,वेश्या-तंत्र है ये मैं जानता हूँ . लूटकर देश को , पैसे कैसे विदेश जाते है , और विरोध करने पर, कैसे पिटवाते हैं ,लतियाते हैं ये मैं जानता हूँ ., अनपढ़ और गवार, जाहिल और बदमाश , बलात्कारी और हत्यारे कैसे देश चलाते हैं ये मैं जानता हूँ .

ये मैं जानता हूँ

रातो को जागते हुए, चाँद को ताकते हुए, तुम क्या होती हो, ये मैं जानता हूँ जब सब सब सो जाते है , तुम छुप -छुप के क्यों रोती हो. ये मैं जानता हूँ किसकी यादो में खोई , तुम भीड़ में निपट अकेली होती हो , ये मैं जानता हूँ सावन में बादलों को देख के , ठण्ड हवा के झोको से , तुमको कौन सी बेचैनी हैं , ये मैं जानता हूँ धरती क्यों प्यासी है , आकाश क्यों आवारा है , ये मैं जानता हूँ रंजन मिश्र

poem

(विनोद काम्बली के लिए ) जिसको मैंने भुलाया था कई सालो में , वो आज फिर मुझे रुला गयी . इन चोरो की महफ़िल में , फिर आज सच शरमा गयी . रंजन मिश्र जनतंत्र ने हमे लूट लिया वरना हम भी कभी हस्ती थे . आरक्षण ने हैं बर्बाद किया वरना हम भी कभी हस्ती थे . रंजन मिश्र तुझे देखा तो ये जाना "शमां" मुहब्बत भी हसीं होती है . तू कहाँ तक जाएगी "शमां " मैं तो हर मोड़ पर मिलूँगा . मैं आम कैसे खाऊ "शमां" उसमे भी भगवा रंग होता है . मल्लिका ने खाया गोश , पचा नहीं पाई, हो गयी बेहोश , मैंने कहा सोनिया से ट्रेनिंग लो , कैसे खाते है मंदिर का सोना , ... क्या लोगो को बताते हैं , कैसे भरमाते है , कैसे पचाते हैं , कैसे २ग का डकार लगते हैं कैसे भ्रम फैलाते है , लोगो के बोलने पर ,कैसे पिटवाते हैं . तू नाराज़ मत हो ,मैं तुझे चाँद दिला दूंगा.