poem

(विनोद काम्बली के लिए )
जिसको मैंने भुलाया था कई सालो में ,
वो आज फिर मुझे रुला गयी .
इन चोरो की महफ़िल में ,
फिर आज सच शरमा गयी .
रंजन मिश्र
जनतंत्र ने हमे लूट लिया
वरना हम भी कभी हस्ती थे .
आरक्षण ने हैं बर्बाद किया
वरना हम भी कभी हस्ती थे .
रंजन मिश्र

तुझे देखा तो ये जाना "शमां"
मुहब्बत भी हसीं होती है .

तू कहाँ तक जाएगी "शमां "
मैं तो हर मोड़ पर मिलूँगा .


मैं आम कैसे खाऊ "शमां"
उसमे भी भगवा रंग होता है .

मल्लिका ने खाया गोश ,
पचा नहीं पाई,
हो गयी बेहोश ,
मैंने कहा सोनिया से ट्रेनिंग लो ,
कैसे खाते है मंदिर का सोना ,
... क्या लोगो को बताते हैं ,
कैसे भरमाते है ,
कैसे पचाते हैं ,
कैसे २ग का डकार लगते हैं
कैसे भ्रम फैलाते है ,
लोगो के बोलने पर ,कैसे पिटवाते हैं .

तू नाराज़ मत हो ,मैं तुझे चाँद दिला दूंगा.

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