ये मैं जानता हूँ

रातो को जागते हुए,
चाँद को ताकते हुए,
तुम क्या होती हो,
ये मैं जानता हूँ
जब सब सब सो जाते है ,
तुम छुप -छुप के क्यों रोती हो.
ये मैं जानता हूँ
किसकी यादो में खोई ,
तुम भीड़ में निपट अकेली होती हो ,
ये मैं जानता हूँ
सावन में बादलों को देख के ,
ठण्ड हवा के झोको से ,
तुमको कौन सी बेचैनी हैं ,
ये मैं जानता हूँ
धरती क्यों प्यासी है ,
आकाश क्यों आवारा है ,
ये मैं जानता हूँ
रंजन मिश्र

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