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Showing posts from December, 2011

दलित का नामकरण

दलित का नामकरण पहले डोम ,चमार ,दुसाध पाशी ,धोबी और अनेक थे . फिर उन्हों ने एक जमात बनाई, और सब लोगो को बताई , कि वे भगवान के सपूत हैं , "हरिजन " हैं ये सबको समझाई , इसी नाम से चिपके रहे वर्षो , इन्तजार करते रहे चमत्कार का , रहनुमा उनके ,उन्हें बेचते रहे , और ये लोलीपोप चूसते रहे . वर्षो बाद भीर एक सुझाव आया , फिर से अपना नाम बदलवाया , अब इन्हें दलित कहते हैं , नए पैक में वही सामान बेचते हैं, उनके तथाकथित भगवान , उन्हें बहलाते है ,फुसलाते हैं , फिर भी काम न हो पाए , तो बरगलाते हैं , और वोट ले कर उड़न-छू हो जाते हैं. दलित के देवताओ के भाषण सुने हमने , वे उन्हें अलगाववादी बनाते है , धर्म-परिवर्तन कि राह दिखाते हैं . सदियो पहले हुए अन्याय , अत्याचार ,बलात्कार और अपमान , कि कहानी सुनाते है, उन सब की याद दिला-दिला कर , उन्हें डराते है , और फिर वोट ले कर उड़न-छू हो जाते है . मैंने पूछा था एक ऐसे ही देवता से , तुमने क्या किया उथान के लिए ? उसने सारे जबाब दिए , कि हमने पत्थर कि मूर्तियाँ बनवाई , पार्क बनवाए , हथियो का झुण्ड खड़ा किया , हमने भाषण दिए , और सच का परचम फहराया . मैंने कहा च...

नेता खड़ा करना नहीं , परिवर्तन लक्ष्य था .

नेता खड़ा करना नहीं , परिवर्तन लक्ष्य था . महत्वकांक्षा होती ही है , सामूहिक यज्ञ का संकल्प था , नेता खड़ा करना नहीं , परिवर्तन लक्ष्य था . प्रसिद्ध होना नहीं , परमार्थ का प्रण था , नेता खड़ा करना नहीं , परिवर्तन लक्ष्य था . लड़ तो हम रहे ही हैं , इसे आन्दोलन बनाने का प्रश्न था . नेता खड़ा करना नहीं , परिवर्तन लक्ष्य था . आपस में सदियो से लड़ ही रहे हैं , ये एक साथ लड़ने का मंच था , नेता खड़ा करना नहीं , परिवर्तन लक्ष्य था . पत्थर तो हम फेक रहे हैं , यहाँ ज्वारभाटा पैदा करने का सामर्थ था , नेता खड़ा करना नहीं , परिवर्तन लक्ष्य था . जी तो जानवर भी लेते हैं , स्वाभिमान जगाना हमारा मकसद था , नेता खड़ा करना नहीं , परिवर्तन लक्ष्य था . केकड़ा तो हम है ही , यहाँ एक-दूजे के लिए जीने का वचन था , नेता खड़ा करना नहीं , परिवर्तन लक्ष्य था . अन्याय तो हम सह ही रहे हैं , यहाँ विरोध का विकल्प था , नेता खड़ा करना नहीं , परिवर्तन लक्ष्य था . व्यग्तिगत एजेंडा नहीं , यहाँ सामूहिक उद्देश्य था , नेता खड़ा करना नहीं , परिवर्तन लक्ष्य था .

आरक्षण तो आरक्षण होता है

दे लो कितना भी तर्क , बहस छेड़ दो दुनिया में , ठहरा लो उचित कितना भी, लेकिन आरक्षण तो आरक्षण होता है . कितना भी हो मीठा , चाहे पूरी दुनिया पीती हो , लेकिन जहर तो जहर होता हैं . कितना भी रगड़ लो साबुन , सिदियों उसे साफ़ करो , लेकिन कोयला तो कोयला ही होता है . दूध पिलाओ जिंदगी भर , लाख प्रयत्न करो लो मित्रता का , लेकिन सांप तो सांप होता है . कितना भी महान बन लो , विजय का धौस दिखा लो, लेकिन मौत तो मौत होता हैं , झंडे उठा के घुमो , आन्दोलन खड़ा कर दो , बवाल मचाओ , या क़त्ल -ए-आम करो , लेकिन सरकार तो सरकार होती हैं .
हाय रे ! महंगाई , हाय रे ! FDI पहले जाति को बेचा , फिर भाषा को बेचा , फिर क्षेत्रवाद को बेचा , अब बेच रहे किसान को , हाय रे ! महंगाई , हाय रे ! FDI जंगलो को बेचा , पहाड़ों को बेचा , अब बेच रहे खेत-खलिहान को , हाय रे ! महंगाई , हाय रे ! FDI सम्मान को बेचा , संस्कार को बेचा , परम्परा के अभिमान को बेचा , अब बेच रहे ईमान को , हाय रे ! महंगाई , हाय रे ! FDI . कपडे को बेचा , कंगन को बेचा , होठो के रंगत को बेचा , अब बेच रहे अपने दूकान को , हाय रे ! महंगाई , हाय रे ! FDI
कौन गद्दार हैं ,ये कौन गद्दार है मित्र के वेश में करता प्रहार हैं , कौन गद्दार हैं ,ये कौन गद्दार है . काया इसका काला हैं , कि कर्म इसका काला , आस्तीनों के सांपो का , यही तो धर्म है , कौन गद्दार हैं ,ये कौन गद्दार है . नेता कि खाल में , कि अफसर कि लिवाज़ में , बाज़ार के इस भाव में , कौन गद्दार हैं ,ये कौन गद्दार है . आरक्षण कि आड़ में , कि जाति की की छाव में , कि धर्म कि बाज़ार में , कि भाषा की बयार में , की क्षेत्रवाद के अफीम में , कौन गद्दार हैं ,ये कौन गद्दार है . बिक चुके अखबार में , कि वेश्या TB चेनलो में , कि साहित्य के संसार में , कि विज्ञान के अहंकार में , कौन गद्दार हैं ,ये कौन गद्दार है . नशाखोरी की जिंदगी में , कि सेक्स कि गुलामी में , अहंकार कि लड़ाई में , कि डर के गहराई में , कौन गद्दार हैं ,ये कौन गद्दार है . FDI की में बहार में , कि महंगाई कि मार में , रिश्वतखोरी कि चाह में , आम्भी कुमारो के गाँव में , कौन गद्दार हैं ,ये कौन गद्दार है सुभाष कि लड़ाई में , कि गाँधी कि सच्चाई में , नेहरु कि अगवाई में , विरासत कि बेहयाइ में , कौन गद्दार हैं ,ये कौन गद्दार है . किसानो के आत...

कौन गद्दार हैं ,ये कौन गद्दार है

कौन गद्दार हैं ,ये कौन गद्दार है मित्र के वेश में करता प्रहार हैं , कौन गद्दार हैं ,ये कौन गद्दार है . काया इसका काला हैं , कि कर्म इसका काला , आस्तीनों के सांपो का , यही तो धर्म है , कौन गद्दार हैं ,ये कौन गद्दार है . नेता कि खाल में , कि अफसर कि लिवाज़ में , बाज़ार के इस भाव में , कौन गद्दार हैं ,ये कौन गद्दार है . आरक्षण कि आड़ में , कि जाति की की छाव में , कि धर्म कि बाज़ार में , कि भाषा की बयार में , की क्षेत्रवाद के अफीम में , कौन गद्दार हैं ,ये कौन गद्दार है . बिक चुके अखबार में , कि वेश्या तब चेनलो में , कि साहित्य के संसार में , कि विज्ञान के अहंकार में , कौन गद्दार हैं ,ये कौन गद्दार है . नशाखोरी की जिंदगी में , कि सेक्स कि गुलामी में , अहंकार कि लड़ाई में , कि डर के गहराई में , कौन गद्दार हैं ,ये कौन गद्दार है . फदी में बहार में , कि महंगाई कि मार में , रिश्वतखोरी कि चाह में , आम्भी कुमारो के गाँव में , कौन गद्दार हैं ,ये कौन गद्दार है सुभाष कि लड़ाई में , कि गाँधी कि सच्चाई में , नेहरु कि अगवाई में , विरासत कि बेहयाइ में , कौन गद्दार हैं ,ये कौन गद्दार है . किसानो के आत्महत...
RANJAN MISHRA मैं तेरा दीवाना हूँ , तू ये मानोगी जरूर , आज मानो या न मानो , कल ये मानोगी जरूर , मैं तेरा दीवाना हूँ , तू ये मानोगी जरूर. जाओ जितना भी तू दूर , लौट के आओगी जरुर . मैं तेरा दीवाना हूँ , तू ये मानोगी जरूर. RANJAN MISHRA चकाचौध में खो गयी हो , है नहीं ये तेरा कसूर , आज नहीं तो कल को ही , तुम समझ जोयेगी जरूर , मैं तेरा दीवाना हूँ , तू ये मानोगी जरूर. मुझको है तेरी जरुरत , मुझको है तुमसे ही प्यार , आज नहीं तो कल ही , घर आओगी जरूर , मैं तेरा दीवाना हूँ , तू ये मानोगी जरूर. अकेले-अकेले थक जोयेगी , दूर होगा तेरा गरूर , मैं तेरा दीवाना हूँ , तू ये मानोगी जरूर. RANJAN MISHRA

टेक्निकल मजदूर भईले सईया हमार

टेक्निकल मजदूर भईले सईया हमार , जब से चलल बा टेक्निकल के बयार बंगलोर में नौकरी करे सईया हमार , सुने नी की सईया इंजिनियर हवे , पर दिन-रात खटले भईले सईया हमार , सूबे-सूबे सात बजे हो जले तैयार , आवे ले राती के बारह बजे थक- हार , टेक्निकल मजदूर भईले सईया हमार , साल में एके बार आवेले घरे हर रात याद दिलावे सईया हमार , रात भर नेट पर चैट करे सईया,