दलित का नामकरण
दलित का नामकरण
पहले डोम ,चमार ,दुसाध
पाशी ,धोबी और अनेक थे .
फिर उन्हों ने एक जमात बनाई,
और सब लोगो को बताई ,
कि वे भगवान के सपूत हैं ,
"हरिजन " हैं ये सबको समझाई ,
इसी नाम से चिपके रहे वर्षो ,
इन्तजार करते रहे चमत्कार का ,
रहनुमा उनके ,उन्हें बेचते रहे ,
और ये लोलीपोप चूसते रहे .
वर्षो बाद भीर एक सुझाव आया ,
फिर से अपना नाम बदलवाया ,
अब इन्हें दलित कहते हैं ,
नए पैक में वही सामान बेचते हैं,
उनके तथाकथित भगवान ,
उन्हें बहलाते है ,फुसलाते हैं ,
फिर भी काम न हो पाए ,
तो बरगलाते हैं ,
और वोट ले कर उड़न-छू हो जाते हैं.
दलित के देवताओ के भाषण सुने हमने ,
वे उन्हें अलगाववादी बनाते है ,
धर्म-परिवर्तन कि राह दिखाते हैं .
सदियो पहले हुए अन्याय ,
अत्याचार ,बलात्कार और अपमान ,
कि कहानी सुनाते है,
उन सब की याद दिला-दिला कर ,
उन्हें डराते है ,
और फिर वोट ले कर उड़न-छू हो जाते है .
मैंने पूछा था एक ऐसे ही देवता से ,
तुमने क्या किया उथान के लिए ?
उसने सारे जबाब दिए ,
कि
हमने पत्थर कि मूर्तियाँ बनवाई ,
पार्क बनवाए ,
हथियो का झुण्ड खड़ा किया ,
हमने भाषण दिए ,
और सच का परचम फहराया .
मैंने कहा चुप ! मुंह बंद
तुम लोग आरक्षण के नाम पर ,
सामाजिक विषमता के नाम पर ,
उनके रोज़गार को लूट लेते हो ,
उनके अधिकार और जमीन छीन लेते हो ,
जमीन पर नहीं आने देते सुविधा ,
तुम छत में रहते हो ,
और वे झोपडी में रहते हैं .
बोलो क्या तुम सच बता पाओगे ?
कि
अन्याय ,अपमान ,अत्याचार ,
ये जाति से जुड़े नहीं होते ,
ये अमीरी से जुडी होती हैं
और ताकत और सत्ता से .
बोलो क्या तुम सच बता पाओगे ?
आज सत्ता में बैठे लोग ,
सच बोलने पर पागलखाने भेज देते हैं ,
जेल में लाठियो कि बरसात करवाते है .
कब तक खेलेगे ये खेल ?
दलित और ब्रह्मण ,
हिन्दू और मुस्लिम ,
बिहार और महाराष्ट ,
हिंदी और अंग्रेजी ,
बंद करो ये खेल !
रहने दो भाई-चारा और मेल .
पहले डोम ,चमार ,दुसाध
पाशी ,धोबी और अनेक थे .
फिर उन्हों ने एक जमात बनाई,
और सब लोगो को बताई ,
कि वे भगवान के सपूत हैं ,
"हरिजन " हैं ये सबको समझाई ,
इसी नाम से चिपके रहे वर्षो ,
इन्तजार करते रहे चमत्कार का ,
रहनुमा उनके ,उन्हें बेचते रहे ,
और ये लोलीपोप चूसते रहे .
वर्षो बाद भीर एक सुझाव आया ,
फिर से अपना नाम बदलवाया ,
अब इन्हें दलित कहते हैं ,
नए पैक में वही सामान बेचते हैं,
उनके तथाकथित भगवान ,
उन्हें बहलाते है ,फुसलाते हैं ,
फिर भी काम न हो पाए ,
तो बरगलाते हैं ,
और वोट ले कर उड़न-छू हो जाते हैं.
दलित के देवताओ के भाषण सुने हमने ,
वे उन्हें अलगाववादी बनाते है ,
धर्म-परिवर्तन कि राह दिखाते हैं .
सदियो पहले हुए अन्याय ,
अत्याचार ,बलात्कार और अपमान ,
कि कहानी सुनाते है,
उन सब की याद दिला-दिला कर ,
उन्हें डराते है ,
और फिर वोट ले कर उड़न-छू हो जाते है .
मैंने पूछा था एक ऐसे ही देवता से ,
तुमने क्या किया उथान के लिए ?
उसने सारे जबाब दिए ,
कि
हमने पत्थर कि मूर्तियाँ बनवाई ,
पार्क बनवाए ,
हथियो का झुण्ड खड़ा किया ,
हमने भाषण दिए ,
और सच का परचम फहराया .
मैंने कहा चुप ! मुंह बंद
तुम लोग आरक्षण के नाम पर ,
सामाजिक विषमता के नाम पर ,
उनके रोज़गार को लूट लेते हो ,
उनके अधिकार और जमीन छीन लेते हो ,
जमीन पर नहीं आने देते सुविधा ,
तुम छत में रहते हो ,
और वे झोपडी में रहते हैं .
बोलो क्या तुम सच बता पाओगे ?
कि
अन्याय ,अपमान ,अत्याचार ,
ये जाति से जुड़े नहीं होते ,
ये अमीरी से जुडी होती हैं
और ताकत और सत्ता से .
बोलो क्या तुम सच बता पाओगे ?
आज सत्ता में बैठे लोग ,
सच बोलने पर पागलखाने भेज देते हैं ,
जेल में लाठियो कि बरसात करवाते है .
कब तक खेलेगे ये खेल ?
दलित और ब्रह्मण ,
हिन्दू और मुस्लिम ,
बिहार और महाराष्ट ,
हिंदी और अंग्रेजी ,
बंद करो ये खेल !
रहने दो भाई-चारा और मेल .
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