हाय रे ! महंगाई ,
हाय रे ! FDI
पहले जाति को बेचा ,
फिर भाषा को बेचा ,
फिर क्षेत्रवाद को बेचा ,
अब बेच रहे किसान को ,
हाय रे ! महंगाई ,
हाय रे ! FDI
जंगलो को बेचा ,
पहाड़ों को बेचा ,
अब बेच रहे खेत-खलिहान को ,
हाय रे ! महंगाई ,
हाय रे ! FDI
सम्मान को बेचा ,
संस्कार को बेचा ,
परम्परा के अभिमान को बेचा ,
अब बेच रहे ईमान को ,
हाय रे ! महंगाई ,
हाय रे ! FDI .
कपडे को बेचा ,
कंगन को बेचा ,
होठो के रंगत को बेचा ,
अब बेच रहे अपने दूकान को ,
हाय रे ! महंगाई ,
हाय रे ! FDI

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