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Showing posts from 2017
सैनिकों के शहादत बेकार ना होइ , ई गाल कबतक बाजायेम रउरा ? मेहरारूआ जवन चूड़ी भेजले रहे प्रधानमंत्री के , पूछी ओकरा से कि साडी भेजब का ई बार रउरा ? पुछला पर लोगवा खिसिया जा ता ये बार , सैनिक का मुर्गा हवे कि हलाल करेब रउरा ? छपन इंच के छाती फुला के पहलवान बनत बानी , लोगवा कहत  बा मऊगन के सरदार बानी रउरा । कब तक शेर के खाल ओड़ के रहब ई गर्मी में , कही त बता दी सबके कि रंगल सियार हई रउरा । तीन साल से प्रचारमंत्री बनल बानी रउरा , लोग पूछत बा असली प्रधानमंत्री के नाम बताई रउरा । Copyright@Sankalp Mishra
तुम मुझे अपमानित करो , मुझे गाली दो , मुझे मारो- पीटो, मेरी हत्या कर दो , क्योंकि मैं हिन्दू नहीं हूँ , न मुस्लिम हूँ , न ईसाई , न पारसी , न बौद्ध , न जैन । तुम मेरी जबाब काट दो , क्योंकि न मैं हिंदी बोलता हूँ, न अंग्रेजी , न उर्दू और न ही फ़ारसी , मुझे न मराठी आती हैं , न तामिल, न बंगला मुझे कोई भाषा नहीं आती । तुम मुझे जेल में डाल दो क्योंकि न भारतीय हूँ , न चीनी , न अमेरिकन, मैं किसी देश का हूँ ही नहीं । तुम मेरा जीना हराम कर दो , क्योंकि न मैं ब्राह्मण हूँ , न राजपूत , न बनिया , और न ही हरिजन , मेरा कोई जाति नही , मेरी कोई पहचान नहीं , मैं तुम्हारा वोटबैंक नही हूँ , और न ही तुम्हारा खरीददार हूँ , मुझे न हथियार खरीदना हैं , और न ही साजो - सामान खरीदना हैं , मैं तुम्हारे झूठ को पकड़ लेता हूँ , और तुम्हारे झूठे वादों को पकड़ लेता हूँ , इसलिए कहता हूँ , मुझे बदनाम करो , अपमानित करो , मारो- पीटो , मेरा हत्या कर दो , क्योंकि मैं स्वतंत्र पक्षी हूँ , ये हवा , ये नदी , ये जंगल , ये पहाड़ , और मैदान सब मेरे हैं , मुझे तुम्हारी कोई जरुरत नहीं ...
जब न कोई दोस्त हो न दुश्मन, न जीत हो , न हार , न अपना हो , न पराया, तो समझिये कि समय हो गया । न दिन हो , न रात , न उजाला हो,न अँधेरा , न जीने की इच्छा हो ,न मौत की चाह, तो समझिये कि समय हो गया । न माँ  हो , न बाप , न भाई हो , न लुगाई , न नाता हो , न कोई रिश्ता , तो समझिये कि समय हो गया । न स्वाथ्य हो , न सम्पति , न प्रतिष्ठा हो , न प्यार , न अकेले हो , न भीड़ में , तो समझिये कि समय हो गया । Copyright@Sankalp Mishra
हर बात सच नहीं होती ,कैसे समझाऊं ? दिन में भी रात होती हैं ,कैसे समझाऊं ? सफ़र में हार-जीत नहीं होती,कैसे समझाऊं ? जीने की कला सीख ले मेरे दोस्त , जिंदगी लंबी हैं और कदम कमज़ोर, लाश बहुत भारी हो जायेगी ,कैसे समझाऊं ? कुत्तों पर पत्थर नहीं मारते,कैसे समझाऊं ? रात में धूप-चश्मा नहीं लगाते ,कैसे समझाऊं ? हर पहेली समझ नहीं आती ,कैसे समझाऊं ? अपने को अब समझना शुरू कर मेरे दोस्त , मंजिल दूर हैं और तुम अकेले , अब हार सहना मुश्किल होगा ,कैसे समझाऊं ? जो चेहरा हैं वही हो जरुरी नहीं ,कैसे समझाऊं ? रक्त में भी सफ़ेद कण होते हैं , कैसे समझाऊं ? सबकुछ एक जैसा नहीं होता , कैसे समझाऊं ? चीजों को परखने की कला सीख मेरे दोस्त , दुनियां जटिल हैं और तुम अनाड़ी, अब तुम अबोध बच्चे नहीं रहे ,कैसे समझाऊं ? Copyright@Sankalp Mishra
किस्मत कहाँ लेकर कर जा रही है  ? दूर ,वहां जहाँ हरियाली हैं , बड़े -बड़े खेत हैं , लंबे -लंबे पेड़ है, और एक नदी हैं । किस्मत कहाँ लेकर जा रही हैं ? वहां जहाँ सूरज चमकता हैं , खुशियाँ बिखरी रहती हैं , शोर नहीं ,चिन्ता नहीं , और शांति दूर तक पसरी रहती है । जिंदगी कहाँ लेकर जा रही हैं ? वहां जहाँ सौंदर्य हैं , संपति हैं ,संतोष हैं , आपसी संपर्क हैं और समरसता हैं । जिंदगी कहाँ लेकर जा रही हैं ? वहां जहाँ आसमान ऊँचा नहीं हैं , आत्मबल हैं ,शौर्य हैं , कुछ भी कर गुजरने का जीवट हैं , और एक इतिहास बनने के इन्तजार में हैं । जिंदगी कहाँ लेकर जा रही हैं ? Copyright@Sankalp Mishra
सच मत बोल ,it is not allowed घोट देते हैं गला , दबा देते हैं सच , इसे कहते है आज स्वतंत्रता , इसे ही कहते है लोकतंत्र । जिसकी लाठी ,उसी की भैस , अपने-अपने दुनिया के सब लठैत , शोषण सहने को आज अनुशासन कहते है , भाई ! इसे ही लोकतंत्र का शासन कहते हैं । बाँध के गले में टाई, चमचमाते है जूता , बाप को गाली देने वाले , आज गढ़ते  है सभ्यता की परिभाषा । Copyright@Sankalp Mishra
राजनीति क्या हैं ? आदमी को खको में बाँटने की काबिलियत , या उसे अपने पाले में खड़े करने का पराक्रम , आखिर क्या हैं राजनीति ? लाल झंडे गाड़ कर जमीन हथिया लेना , या आरक्षण की रेवड़ी बाँट देना ? किसे कहेंगे राजनीति ? दंगे करवा कर अनसन करने का ढोंग , राजनीति हैं ? या आगजनी ,दंगे पर मौन रह जाना , राजनीति हैं ? राजनीति क्या हैं ? देश में देश के खिलाफ नारे लगाना , या देश में देश के खिलाफ इंकलाब , क्या हैं राजनीति ? गरीबो को बरगाला कर हथियार देना , या विकास का नारा देकर , गरीबो ,आदिवासियों का जमीन हथिया लेना , क्या हैं राजनीति ? धर्म की लकीर खींचकर देश बाँट देना , या जाति की लकीर खींचकर समाज बाँट देना , क्या हैं राजनीति ? अमीर को और अमीर बनते जाना , या दो जून की रोटी के लिए , इंसानों  को जानवरों से बदतर बना देना, किसे कहेंगे राजनीति आप ? पूंजीपतियों के जेब में बैठी सरकार के लिए , या ज्यादा जनसँख्या वाले जाति के लिए , बहुत दूर आत्महत्या करते किसान के लिए ? या पढ़-लिख कर बेरोजगार बैठे जवान के लिए , क्या हैं राजनीती ? एक सपना जो पूरा नहीं होगा ? या मृगतृणा ? या चि...
देशभक्ति क्या हैं ? एक सैनिक की जवान बीबी को बेवा कर देना , या अबोध बच्चे को अनाथ कर देना , या किशोरो को बरगला कर हथियार थमा देना , समय के साथ आदमी का मज़दूर बनते जाना , या सब कुछ के मालिक चंद लोगो का हो जाना , क्या हैं देशभक्ति ? कोर्ट परिसर में किसी को लतिया देना , या  रोमियो - सुधार दल बना देना , हमारे जिंदगी पर पूर्ण नियंत्रण देशभक्ति हैं , या रोटी देने से पहले टैक्स वसूलता देशभक्ति हैं , क्या हैं देशभक्ति ? सदियों से गरीब और गुलाम बनाये रखना , या क्षेत्र , धर्म , जाति आदि के खाको में बाँटना , लगातार सपने की खेती करते जाना , या हर बार बेचने का नया तरीका अपनाना , हर बार जुमले बेचना देशभक्ति हैं , या अमीरों का सत्ता को रखैल बनाना  देशभक्ति हैं , या गरीबों का सत्ता की गुलामी देशभक्ति हैं , क्या हैं देशभक्ति ? दूर गाँव में आत्महत्या करते किसान के लिए , रोजगार के लिए भटकते नौजवान के लिए , आरक्षण की मार झेलते समाज के लिए , जल -जमीन- जंगल को शहरी भेडियो से बचाने के लिए संघर्षरत आदिवासी नौजवान के लिए , आदमी की आज़ादी के लिए लड़ते लोगो के लिए , क्या हैं देशभक...
यह सड़क हैं या चौराहा हैं ? लगता तो इंसान हैं दिखता मगर साया हैं , यकीं तो आज भी हैं इस शख्स पर , लेकिन कहना पड़ेगा ' आदमी ' बेचारा हैं । मंजिल जब मालुम न हो , राह कौन सही हैं ? कंधे पर उठा लिए हैं बोझ बहुत सारा , और पैर को मालूम नहीं हैं , यह सड़क हैं या चौराहा हैं ? लगता तो इंसान हैं दिखता मगर साया हैं | Copyright@Sankalp Mishra