आज कल रात नहीं होती

आज कल रात नहीं होती,
सुबह हो जाती है ,
जब मै आँख खोलता हूँ ,
तो सुबह होती है,
और जब आँख बंद करता हूँ,
तब रात नहीं होती.
मै सोचता हूँ
उसका घर कहाँ है ,
उसके भाई-बहन कौन है ,
उसके माँ-बाप कौन है,
या अकेली है रात ?
सबके तन्हाई की संगनी ,
चाँद की रागनी,
कवियों के कुंठा की गवाह,
आखिर कहाँ खो गयी है रात.

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