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Showing posts from 2013
आदमी जब कमजोर हो दुनिया उसकी हौसले तोड़ देती हैं , जब सबसे ज्यादा जरुरत  हो औरत  साथ छोड़ देती हैं। समय पर सियासत अपनापन के सारे भ्रम तोड़ देती हैं , गरीबी जब मेहमान हो तवायफ भी रास्ता मोड़ लेती हैं। दौलत से भरा हो आंगन तो हस्तियां मेहमान होती हैं , अनहोनी होने के पहले गौरैया आपका घर छोड़ देती हैं। 
ये इश्क ये बेरुखी ये तन्हाई कहाँ ले जायेगी , लगता हैं कमबख्त फिर मैखाना ले जायेगी । तेरी कमी इस तरह से फैली हैं मेरी जिन्दगी में , लगता हैं साकी मुझे फिर आजमाने ले जाएगी । तुम्हे भूल ही नहीं पाता पलभर के लिए भी कभी, लगता हैं ये आशिकी अब जनाजे के साथ जायेगी । तुम मुझे याद भी नहीं करती अच्छा हैं जमाने के लिए, गर तुम याद कर लो मुझे  बहुतो की जान जायेगी ।

इंजिनियर भईले बेरोजगार भैया , तोड़ देहले बाबूजी के आस भैया

इंजिनियर भईले बेरोजगार भैया , तोड़ देहले बाबूजी के आस भैया , कहत रहले कि लाखों कमायब , भूजा के भईले भाव भैया , लोगवा अब आपन लइकन के पढ़ावे से डेराता , कहत बा हो जाई इंजिनियर साहब के हाल भैया , इंजिनियर भईले बेरोजगार भैया , तोड़ देहले बाबूजी के आस भैया। खेतवा बेची-बेची बाबूजी पढैले , अब हो ता घरवा नीलाम भैया , कानपूर रहले ,पटना रहले ,लेहले ज्ञान दिल्ली के , सारा पढाई भइल कोदो के भाव भाव भैया , इंजिनियर भईले बेरोजगार भैया , तोड़ देहले बाबूजी के आस भैया। कहत रहले कि पढ़ के मकान बनाइब , बना देहले घरवा के मचान भैया , खात रहले रोजे पिज़्ज़ा -बर्गर , अब खाले बाबूजी के दुत्कार भैया , इंजिनियर भईले बेरोजगार भैया , तोड़ देहले बाबूजी के आस भैया। भैया रहले बाबूजी के बुढौती के लाठी , ई तोड़ देहले खटिया के तार भैया , सुने नी करेले बड़ी फाइन कविता , अब कविते में लोग इनकर उढावे मज़ाक भैया , इंजिनियर भईले बेरोजगार भैया , तोड़ देहले बाबूजी के आस भैया।
मेरे बिस्तर के ठीक नीचे मेरा कंकाल निकला , क़त्ल करने वालों के हाथों में मेरा हथियार निकला . ख़ुदा जानता हैं मेरा मुझसे कैसा रिश्ता था , मेरा जेहन मेरे दुश्मनों का जिगरी यार निकला . खुद की जुबा से बेहतर नहीं बाहरी दुश्मन , जब निकला मेरे आस्त ीन से ही सांप निकला . अदालत अमादा हैं सज़ा देने को मगर किसको ? मैं जिन्दा हूँ मगर मेरे लाश से खंजर निकला .
हास्य -रस ........... घर में कमाई कम हैं , चार भाइयो का घर है , लड़की सुंदर सुशील हैं , अकेली संतान कुलीन हैं , मेरे बापू ने हामी भर दी , और मेरी शादी तय कर दी , मैंने कहा उसको कैसे खिलाऊंगा ? उसके लिए लिपस्टिक पाउडर कहाँ से लाऊंगा ? बापू बोले जो सब खाते हैं वही खाएगी , और दो चार सालो के लिए तो खुद ही ले के आएगी , सगाई ,शादी और विदाई सब हो गया , मैं हँसते इंसान से बेचारा बन गया , लोगो ने बधाई के साथ सलाह पिलाई , मेहनत करो और जल्दी से करो गोद भराई , साल भर में बापू की मुराद पूरी हो गयी , बहू दो जुड़वे बच्चे की माँ बन गयी , मुखिया जी ने सरकार से हमे ईनाम दिलवाया , हमने उन्ही पैसो से गाँव में बतासा बंटवाया , मेरी भी तबियत सरकार की तरह हो गयी हैं , जेब में फूटी कौड़ी नहीं लेकिन सब मज़े में कट रही हैं .

long song

मेरा दिल ,मेरा दिल तुम पर आता रहा , और मैं, तुम्हे देखकर मुस्कुराता रहा ....... ना मैंने कहा ना तुमने कहा , सारा जहाँ सबको बताता रहा , मेरा दिल ,मेरा दिल तुम पर आता रहा , और मैं, तुम्हे देखकर मुस्कुराता रहा ....... मैं कहूँगा कल  दिल की बात तुमसे , ये सोच -सोचकर दिन जाता रहा , मेरा दिल ,मेरा दिल तुम पर आता रहा , और मैं, तुम्हे देखकर मुस्कुराता रहा ....... कह दे आज ही ,कही देर ना हो जाए , यही बात मेरा दोस्त समझाता रहा , मेरा दिल ,मेरा दिल तुम पर आता रहा , और मैं ,तुम्हे देखकर मुस्कुराता रहा ....... दिन देख के गुजरता हैं ,रात आहो में , खोजता मैं रहा सारी रात बाहों में , मेरा दिल ,मेरा दिल तुम पर आता रहा , और मैं ,तुम्हे देखकर मुस्कुराता रहा .......
खुद नहीं ,खुद्दारी मर गयी हैं इनकी , ये बस्तियां अब श्मशान सी लगती हैं . ये नहीं इनकी ज़मीर बेगैरत हैं , इन्सानियत अब अफवाह सी लगती हैं . जिन्दगी नहीं मैं मौत से वाकिफ़ हूँ , जिन्दगी तो अब मेहमान सी लगती हैं . सच नहीं संस्कार मर गए हैं इनके  , ईमानदारी अब तो बीमार सी लगती हैं . शब्द नहीं दिमाग आपाहिज हैं इनके , संसद अब दुकान सी लगती हैं . खिलौने छीन गए बच्चो के हाथो से , घर भी अब बाज़ार सी लगती हैं .

Tum Kya jaano

तुम क्या जानो हौसलों के हूनर को , चल समुन्द्र में नाव चला के देखते हैं . हुस्न के बाज़ार में कुछ तो तेरा मोल होगा , चल आज दूकान लगा कर देखते हैं . सुनते हैं आशिया बिखर जाती हैं किनारों पर , चल किनारों पर मकां बना कर देखते हैं . तुम्हे आँखों के हूनर का इल्म कहाँ हैं , चल एक बार आँख मिला कर देखते हैं .  प्यार की दौलत को खर्च करना हैं अब  , चल एक बार दिल लगा कर देखते हैं . गुमान कि तुम सबसे ज्यादा प्यार करती हैं , चल एक बार माँ से मिल कर देखते हैं . हवाओ में उड़ने वाले सड़क का दर्द क्या जाने , चल एक बार सडक पर उतर कर देखते हैं . जो अनाथ होते हैं कहाँ कोई सहारा होता हैं , चल आज किसी की हाथ थाम कर देखते हैं . एक जो नेता बना कुबेर चाकरी करने लगते हैं , चल हम भी चुनाव लड़ कर देखते हैं .

नेता उवाच

सरहदों पर बहने वाले खून का कोई मोल थोड़ी हैं , हमने मुर्गे पाल रखे थे समय आने पर कट गए . अपने नाकामियों का ठीकरा किस पर फोड़ते , हमने दंगा करा दिए सारे पाप गंगा में धुल गए . गाँधी ,सुभाष ,पटेल को कहाँ खोजते तुम ? वो पुराने ज़माने थे ,गुजर गए . हम चुनाव की चासनी बनाने में व्यस्त थे , चीनी मेहमान बनकर बैठ गए . Copyright@ Sankalp Mishra
जब भी मेरे घाव भरने लगते हैं , सियासत वाले नमक छिड़कने लगते हैं , सदियों से बेरोजगार बैठे हैं मेरे नौजवान , मौसमी दंगे इन्हें रोजगार दिला देते हैं , जिनके घरों में चाकू नहीं सब्जी काटने को , सियासत उन्हें तलवार थमा देती हैं . Copyright@Sankalp Mishra आज कल बहुत प्यार आ रहा हैं , लगता हैं अब चुनाव आ रहा हैं . Copyright@  Sankalp Mishra
(1) गर्म हवाओ से दूर रहा करो ,इसकी सोहबत तबियत बिगाड़ देती हैं , हसीनाऐ तो मासूम होती हैं ,इनकी अदायेगी मौसम बिगाड़ देती हैं , (2) गर दूर तलक जाना हैं तो हल्के कदम चल , लम्बे कदम हर बार हौसले बिगाड़ देती हैं . Copyright@ Sankalp Mishra
सोनिया -उवाच रुपया उठे ,बैठे या डूब जाए हमे क्या ? ये हमारा देश थोड़ी ही हैं , लोग रेल से कटे या दंगे से मरे हमे क्या ? ये हमारा देश थोड़ी ही हैं , लोग लुटे या सपने टूटे हमे क्या ? ये हमारा देश थोड़ी ही हैं , धर्म बंटे ,जाति बंटे या भाषा हमे क्या ? ये हमारा देश थोड़ी ही हैं , एक बार वोट मिल जाए फिर हमे क्या ? ये हमारा देश थोड़ी ही हैं . Copyright@  Sankalp Mishra  
कौन कितना गुह लपेटे हैं ,होड़ लग गयी हैं दोस्तों , आज की सियासत बड़ी रंगीन हो गयी हैं दोस्तों . माथे पर गुलामी लिखी हैं ,नींद कैसे खुले दोस्तों , इस मुल्क की किस्मत ही कुछ निराली हैं दोस्तो.  Copyright@ Sankalp Mishra
Let eyes grow dim and heart grow faint , and friendship fail and love betray , let fate its hundreds horrors send , and clotted darkness block the way . And nature were one angry frown , the crush you out still know my soul, you are divine , march on and on , nor right nor left but to the goal . चाहे आँखों का प्रकाश धुंधला पड़ जाए , हृदय कमजोर हो जाए ,मित्र छोड़ जाए , प्रेम धोखा कर जाए और भाग्य सौकड़ो विपतिया भेज दे , पूर्ण अन्धकार तुम्हारे मार्ग में बाधा खड़ी कर दे , और प्रकृति भी तुमसे नाराज़ होकर तुम्हे कुचल दे , तब भी मेरे प्रिय याद रखना कि तुम दिव्य हो , आगे बढते रहना न दाए देखना न  बाँए बस लक्ष्य की तरफ बड़ते जाना .
ऐ  ख़ुदा तू मुझे मौत दे , अब तेरा सितम मंज़ूर नहीं , बेशक तू मुझे कायर कह , पर मुझे तू अब आजाद कर .
जो रूठ जाते हैं वो आशिक़ नहीं होते, अपने आशिक़ से   से तो रूठा ही नहीं जाता . ये जवां हसीं तुम कितना सितम करेगी , अब तेरा सितम सहा नहीं जाता . तेरी हंसी मेरे खून में घूल गयी हैं , अब खून तो रोज़ -रोज़ बदला नहीं जाता . तेरे रोज़ के इनकार से आजिज हो गया हूँ , तेरा रोज़ का बहाना अब सुना नहीं जाता . तेरे हुस्न के जाल में इस तरह से फंस गया हूँ मैं , लाख कोसिसों से अब निकला नहीं जाता . 
अब तुम्हे मैं क्या कहूँ ? तुम्हारे गाली पर भी लोग ताली बजाते हैं . जीत गए जुआ तो चीरहरण भी जायज हैं , वाह रे! जम्होरिअत हम तुम्हारा लोहा मानते हैं . खुदा भी खौफ खाता हैं इन हुक्मरानों से , मौत के सौदागर जो  ये ठहरे . जिन्हें जिम्मेदारी थी  मुझे जिन्दा रखने की , वही मेरे सांसो के खरीदार निकले .  जो हुस्न के मालिक हैं वो दिल की भाषा कहाँ समझते हैं , और जो दिलवाले हैं उन्हें सौगाते हुस्न नहीं मिलता .

फागुन के कइके करार बलमुआ ना आओ

फागुन के कइके करार बलमुआ ना आओ , ना आओ हो .....ना आओ , फागुन के कइके करार बलमुआ ना आओ, कहले रहले की लालका पोतम , अरे नाहि लगइले गुलाल , बलमुआ ना आओ .......ना आओ ....हो ना आओ  फागुन के कइके करार बलमुआ ना आओ , ना आओ हो .....ना आओ। कहले रहले की दिल में बसाईब,दिलवा भइल उदास  , बलमुआ ना आओ .......ना आओ ....हो ना आओ , फागुन में कईसे कटी अब रतिया , बिछौना भइल दिल काल , बलमुआ ना आओ .......ना आओ ....हो ना आओ   , फागुन के कइके करार बलमुआ ना आओ।
एक कसक -सी उठती हैं , कुलबुलाते बुलबुले की तरह , वाष्प बनकर उड़ जाती हैं , जैसे आई थी उसी तरह . मैं रोकना चाहता हूँ , लेकिन वो रूकती कहाँ हैं , ये तितली इतनी सुंदर हैं , लेकिन फूलों पर झुकती कहाँ हैं ? सूर्य में इतनी तेज़ रोशनी हैं , लेकिन आँखें सामने टिकती कहाँ हैं ? मैं तो उसके कानों में कहना चाहता हूँ , लेकिन ये हिरणी सुनती कहाँ हैं ? एक चोट ,एक भय हैं , जो पकते रहता हैं धीरे -धीरे , अंदर इतना ताप छुपा हैं , लेकिन ज्वाला उठती कहाँ हैं ? Copyright@Sankalp Mishra