जो प्यार करता हैं , वो बलात्कार नहीं करता, जो प्यार करता हैं , वो धर्म के नाम पर तलवार नहीं चलाता , जो प्यार करता हैं , वो जाति की बात नहीं करता , जो प्यार करता हैं , वो कभी झूठे वादे नहीं करता , जो प्यार करता हैं , वो तहसील में बैठकर घुस नहीं खाता , जो प्यार करता हैं , वो किसी का पसीना नहीं चुराता , जो प्यार करता हैं , वो कभी शराब नहीं पीता , जो प्यार करता हैं , वो कभी जुआ नहीं खेलता , जो प्यार करता हैं , वो नेता बनता हैं लेकिन नेताओ जैसा काम नहीं करता , जो प्यार करता हैं , वो अफसर तो बनता हैं लेकिन अफसरों जैसा काम नही करता , जो प्यार करता हैं , वो वकील बनता हैं लेकिन झूठ का व्यापार नहीं करता , जो प्यार करता हैं , वो मज़दूर बनता हैं लेकिन स्वाभिमान नहीं बेचता , जो प्यार करता हैं , वो किसान बनता हैं लेकिन आत्महत्या नहीं करता , जो प्यार करता है , वो विधार्थी बनता हैं लेकिन वो समय बर्बाद नहीं करता , जो प्यार करता हैं , वो सरकार बनता हैं लेकिन वो तानाशाह नहीं बनता , सच ये हैं कि जो प्यार करता हैं , असल में वही इंसान बनत...
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Showing posts from April, 2018
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बिहार में फेर आईल जंगल -राज , लोगवा के जिंदगी भइल बेहाल , बिहार में फेर आईल जंगल -राज , बिजली -सड़क नइखे कौनो रोज़गार , जेने देखि जाति -धरम के बवाल , बिहार में फेर आईल जंगल -राज। सपना बेचता ,लूटा जाता घर -दुआर , थाना भइल बा चोरन के दरबार , दलाल चालवंत बाड़े बिहार सरकार , बिहार में फेर आईल जंगल -राज , लोगवा के जिंदगी भइल बेहाल। CopyrightSankalp Misra
देशभक्ति क्या हैं ?
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देशभक्ति क्या हैं ? एक सैनिक की जवान बीबी को बेवा कर देना , या अबोध बच्चे को अनाथ कर देना , या किशोरो को बरगला कर हथियार थमा देना , समय के साथ आदमी का मज़दूर बनते जाना , या सब कुछ के मालिक चंद लोगो का हो जाना , क्या हैं देशभक्ति ? कोर्ट परिसर में किसी को लतिया देना , या रोमियो - सुधार दल बना देना , हमारे जिंदगी पर पूर्ण नियंत्रण देशभक्ति हैं , या रोटी देने से पहले टैक्स वसूलता देशभक्ति हैं , क्या हैं देशभक्ति ? सदियों से गरीब और गुलाम बनाये रखना , या क्षेत्र , धर्म , जाति आदि के खाको में बाँटना , लगातार सपने की खेती करते जाना , या हर बार बेचने का नया तरीका अपनाना , हर बार जुमले बेचना देशभक्ति हैं , या अमीरों का सत्ता को रखैल बनाना देशभक्ति हैं , या गरीबों का सत्ता की गुलामी देशभक्ति हैं , क्या हैं देशभक्ति ? दूर गाँव में आत्महत्या करते किसान के लिए , रोजगार के लिए भटकते नौजवान के लिए , आरक्षण की मार झेलते समाज के लिए , जल -जमीन- जंगल को शहरी भेडियो से बचाने के लिए संघर्षरत आदिवासी नौजवान के लिए , आदमी की आज़ादी के लिए लड़ते लोगो के लिए , क्या हैं देशभक...
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यह सड़क हैं या चौराहा हैं ? लगता तो इंसान हैं दिखता मगर साया हैं , यकीं तो आज भी हैं इस शख्स पर , लेकिन कहना पड़ेगा ' आदमी ' बेचारा हैं । मंजिल जब मालुम न हो , राह कौन सही हैं ? कंधे पर उठा लिए हैं बोझ बहुत सारा , और पैर को मालूम नहीं हैं , यह सड़क हैं या चौराहा हैं ? लगता तो इंसान हैं दिखता मगर साया हैं | Copyright@Sankalp Mishra
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तुम जो चाहते हो वो मैं बोलूं ? ये कभी नहीं होगा , तुम्हारी जुबान जो गन्दी हैं , वो मेरे मुँह में कभी नही होगा । सत्ता आती हैं जाती हैं लेकिन , मेरा सौदा कभी नहीं होगा , जिसको बिकना हैं वो बिके , सुन ! ये मेरा मकान हैं , कभी नीलाम नहीं होगा । मुझे पत्थर से डराते हो कि सत्ता हैं , मैं तेजाब हूँ लोहे से नहीं डरता , पहली बार भरपेट मिला हैं भोजन इतरा रहे हो ? मैं रियासत को खिलाने वाला हूँ , मुझे भूख नहीं लगता । हाथी मर भी जाए तो लाख टके की होती हैं , मैं तुम्हारे तरह कुत्ता नहीं पालता , दूसरे के सिंदूर से ऐहवाती बनने वाले सुन , हमारी संताने आज भी जिन्दा हैं । Copyright@Sankalp mishra
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मैं क्या देखूं , क्या सुनूँ ,क्या सोचूं , ये अखबार बताता हैं । मैं अपने घर में क्या खाऊँ , क्या पकाउँ , ये जाहिलों का सरदार बताता हैं । जो मुल्क सुई से जहाज तक खरीदता हैं , वो जनता को राष्ट्रवाद पढ़ाता हैं । चाल- चरित्र- चेहरा लिए लडकियाँ उठवाता हैं , मगर समाज को संस्कार सिखाता हैं । कितना असहाय हैं मनुष्य देखों मेरे भाई , रोज लूटता हैं लेकिन वो सरकार बनाता हैं । प्रशासन क्रूर हैं , न्यायलय अंधी वो दर्द किसे सुनाये , जो रोज अपनी जर-जोरू-जमीन लूटवाता हैं । Copyright@Sankalp mishra
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ये इश्क़ , बेरुखी और तन्हाई कहाँ ले जायेगी , लगता हैं कमबख्त फिर मैखाना ले जायेगी । तेरी कमी इस तरह से फैली हैं मेरी जिन्दगी में , लगता हैं साकी मुझे फिर आजमाने ले जाएगी । तुम्हे भूल ही नहीं पाता पलभर के लिए भी कभी, लगता हैं ये आशिकी अब जनाजे के साथ जायेगी । तुम मुझे याद भी नहीं करती अच्छा हैं जमाने के लिए, गर तुम याद कर लो मुझे ,बहुतो की जान जायेगी । Copyright@Sankalp mishra
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तुम्हे भूल जाऊँ कैसे , अब तुम ही बताओ , थोड़ी सी जान बची हैं , इसे भी ले जाओ । मतलब नहीं हैं इन किताबों का तुम्हारे बिना , कभी तो , कभी तो एक पन्ना पढ़ जाओ । मुझे नदी की चाह नहीं हैं, रेगिस्तान हूँ , बस एक दिन मूसलाधार बारिश हो जाए । मुझे जमानेभर की खुशिओं की चाहत नहीं , तुम्हे जीभर के देखने की तमन्ना पूरी हो जाए । Copyright@Sankalp mishra
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जो रूठ जाते हैं वो आशिक़ नहीं होते, अपने आशिक़ से तो रूठा ही नहीं जाता . ये जवां हसीं तुम कितना सितम करेगी , अब तेरा सितम सहा नहीं जाता . तेरी हंसी मेरे खून में घूल गयी हैं , अब खून तो रोज़ -रोज़ बदला नहीं जाता . तेरे रोज़ के इनकार से आजिज हो गया हूँ , तेरा रोज़ का बहाना अब सुना नहीं जाता . तेरे हुस्न के जाल में इस तरह से फंस गया हूँ मैं , लाख कोसिसों से अब निकला नहीं जाता . Copyright@Sankalp Mishra
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मैं इन्तजार कर रहा हूँ , क्यों ? नहीं जनता । कब तक ? नहीं जनता । किसलिए ? नहीं जनता । किसका ? ये जानता हूँ लेकिन बताऊंगा नहीं , कभी नहीं , किसी से नहीं । मैं इन्तजार कर रहा हूँ , ये जानते हुए भी कि ये खत्म नहीं होगा , मैं खत्म हो जाऊंगा , ये दुनियां खत्म हो जायेगी , सब लोग खत्म हो जायेंगे , लेकिन मेरा इन्तजार नहीं । मैं इन्तजार कर रहा हूँ , शब्दों के परे , प्रश्नों से परे , कारण से परे , परिणाम से परे , इच्छा से परे , उन्मीद से परे , दोष से परे , द्वेष से परे , भूत से परे , भविष्य से परे , मैं इन्तजार कर रहा हूँ । तुम्हारा हक़ हैं पूछो , लेकिन मैं जबाब नहीं दूंगा , तुम्हारा हक़ रोको , टोको, लेकिन मैं नहीं रुकुंगा , जब तक वो आ न जाए , जब तक मैं मिल न लूँ , जब तक सब समर्पित न कर दूँ , जब तक मुक्त न हो जाऊं , हवाओं में , नदियों में , पहाड़ों में , पतियों में , पेड़ों में , पक्षियों में , जब तक स्वतन्त्र न हो जाऊं , जीवन से , मृत्यु से , काल से , कलंक से , भय से , जय से , पराजय से , चर से , अचर से , देव से , दानव से , मैं इन्तजार कर रहा ...
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सत्ता ने सिखाया कि सामंतवाद से लड़ो , यही तुम्हारे दुश्मन हैं , तुम्हारी रोटी ,कपडे और मकान , ये छीन लेते हैं , और तुम बदहाल जीवन जीते हो , नक्सल बनो ,लूटो और न्याय पाओ , जनता नक्सल बनी , लूट हुई ,हत्याएँ हुई , महलों को तोडा गया , खड़ी फसलों को काटा गया , घरो को हथियाया गया , तथाकथित सामंतवादी भाग खड़े हुए , उन्होंने देश ,दुनियाँ छोड़ दी , कई साल बीत गए , जब सामंतवादी नहीं रहे , फिर भी इनकी भूख ख़त्म नहीं हुई , फिर भी बदहाली कायम रही , फिर भी घर में रोटी नहीं। तब सत्ता ने मुफ्त में अनाज देना शुरू किया , आरक्षण देना शुरू किया , अनुदान देना शुरू किया , बड़े -बड़े वादे करने शुरू किये , हसीन सपने बेचने शुरू किये , फिर भी बदहाली कायम रही , फिर भी घर में रोटी नहीं। फिर सत्ता ने जाति का जहर घोला, फिर धर्म का उन्माद फैलाया , और फिर भी बेरोजगारी दूर न हुई , काश ! काश की सत्ता सिखाती , कि कमाओ ,मेहनत करो , पसीना बहाओ , पढ़ो ,काबिल बनो।, काश ! काश की सत्ता अब भी जाग जाए , काश जनता अब भी समझ जाए। Copyright@Sankalp mishra
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सत्ता ने सिखाया कि सामंतवाद से लड़ो , यही तुम्हारे दुश्मन हैं , तुम्हारी रोटी ,कपडे और मकान , ये छीन लेते हैं , और तुम बदहाल जीवन जीते हो , नक्सल बनो ,लूटो और न्याय पाओ , जनता नक्सल बनी , लूट हुई ,हत्याएँ हुई , महलों को तोडा गया , खड़ी फसलों को काटा गया , घरो को हथियाया गया , तथाकथित सामंतवादी भाग खड़े हुए , उन्होंने देश ,दुनियाँ छोड़ दी , कई साल बीत गए , जब सामंतवादी नहीं रहे , फिर भी इनकी भूख ख़त्म नहीं हुई , फिर भी बदहाली कायम रही , फिर भी घर में रोटी नहीं। तब सत्ता ने मुफ्त में अनाज देना शुरू किया , आरक्षण देना शुरू किया , अनुदान देना शुरू किया , बड़े -बड़े वादे करने शुरू किये , हसीन सपने बेचने शुरू किये , फिर भी बदहाली कायम रही , फिर भी घर में रोटी नहीं। फिर सत्ता ने जाति का जहर घोला, फिर धर्म का उन्माद फैलाया , और फिर भी बेरोजगारी दूर न हुई , काश ! काश की सत्ता सिखाती , कि कमाओ ,मेहनत करो , पसीना बहाओ , पढ़ो ,काबिल बनो।, काश ! काश की सत्ता अब भी जाग जाए , काश जनता अब भी समझ जाए। Copyright@Sankalp mishra
मैं रावण हूँ ,
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मैं रावण हूँ , मैं तुम्हारे अंदर रहता हूँ , क्या तुम भी रावण हो ? नहीं , नहीं तुम रावण नहीं हो , मैं रावण हूँ । हर रोज मेरे अंदर कुम्भकरण जन्म लेता हैं , हर रोज मेरे अंदर मेघनाथ जन्म लेता हैं , और मैं पूरा का पूरा रावण हूँ , मुझे कोई राम मार नहीं सकता हैं , मुझे कोई भगवान् मिटा नहीं सकता है , मैं अमर हूँ , मैं अजन्मा हूँ , मैं रावण हूँ । Copyright@Sankalp mishra
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आज नींद नहीं आई , जानती हो क्यों ? नहीं ? अरे तुम्हारी याद आ गई , और मैं रातभर चाँद को ताकता रह गया , सुबह जब चाँद जाने लगा तो याद आया , अरे ! सुबह हो गई , और मुझे नींद नहीं आई , तुम्हारी सूरत तो दिखी ही नहीं , अब दिल्ली से ' सूरत ' दीखता भी तो नही । क्या तुम जानती हो ? पिछले साल भी मुझे नींद नहीं आई थी , मैंने एक ' गुड़िया ' ख़रीदा था , और उसे ही रातभर देखता रह गया था , सुबह जब रौशनी आई तो याद आया , अरे ! सुबह हो गई , और मुझे नींद नहीं आई , तुम्हारी सूरत तो दिखी ही नहीं , अब दिल्ली में ' सूरत ' दीखता भी तो नहीं । Copyright@Sankalp mishra
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#राजपूत_की_पद्मावत क्या करोगे ? इंतजार करोगे , फ़रियाद करोगे , या कुदाल , हथौड़ा , तलवार करोगे ? ज़मीन छिनी , रोटी - रोजगार छिनी , समाज में ईज्जत छिनी , राज छिनी , दरबार छिनी , दंड का विधान छिनी , प्रजा छिनी , परिवार छिनी , अब माँ का गरूर छीन रहा हैं , अब क्या करोगे ? गणतंत्र की गीत गाओगे ? इंतजार करोगे , फ़रियाद करोगे , या कुदाल , हथौड़ा , तलवार करोगे ? अखबार पर ताला , जुबान पर ताला , बड़े- बड़े दरबार पर ताला , सोच पर ताला , समझ पर ताला , न्याय पर ताला , विधान पर ताला , आज लगा हैं स्वाभिमान पर ताला , अब क्या करोगे ? जनतंत्र की गीत गाओगे ? इंतजार करोगे , फ़रियाद करोगे , या कुदाल , हथौड़ा , तलवार करोगे । Copyright@Sankalp Mishra
कवि मरता नहीं हैं
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कवि मरता नहीं हैं , कवि को मरना भी नहीं चाहिए , तब भी नहीं जब साँसे रुक जाए , तब भी नहीं जब साँसे चल रही हो , कवि हमेशा जिन्दा रहता हैं , शब्दों में , आपके दिलों में , खेत- खलिहानों में , बाज़ार में , दूकान में , आपके मकान में आपके पलंग पर , आपके तकिये के नीचे , आपके उस फूल में जो प्रेमिका को देते हैं , उस गाली में जो मज़दूरों को देते हैं , कवि हमेशा जिन्दा रहता हैं , कवि मरता नहीं हैं । कवि जिन्दा रहता हैं , माँ के क्रंदन में , बच्चे के किलकारी में , युवा के आक्रोश में , बुजुर्ग के अफ़सोस में , आपके उल्लास में , आपके टीस में , आपके सपने में , आपके यात्रा में , आपके गंतव्य में , कवि जिन्दा रहता हैं , कवि मरता नहीं हैं । कवि जिन्दा रहता हैं , उस आवाज में जो सत्ता के खिलाफ होता हैं , अहंकार और नाकाबिलियात के खिलाफ होता हैं , उस आवाज में जो गूंगी जनता बोलती हैं , उस आवाज में जो ताकतवर सुनना चाहते है , उस आवाज में जो दबाई जाती हैं , उस आवाज में भी जो पतंग पर चढाई जाती हैं , उस आवाज में जो शहरों के शोर में दब जाता हैं , उस आवाज में...
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तुम्हारे चेहरे पर यकीं करूँ या बातो पर , समझ नहीं आता । ये दुनियां हैं यहाँ काला और सफ़ेद , समझ नहीं आता । नादान तो हो , बालक नहीं हो मार दूँ या रहम करूँ , समझ नही आता । तुम्हारे रोके तो ये सफर रुकेगा नहीं , तुम्हारे गद्दारी की सजा क्या दूँ , समझ नहीं आता । तुम भूल कैसे गए कि मैं रावण हूँ , तुमने अंजाम क्यों नहीं सोचा , समझ नहीं आता । Copyright@Sankalp mishra