जो रूठ जाते हैं वो आशिक़ नहीं होते,
अपने आशिक़ से तो रूठा ही नहीं जाता .
ये जवां हसीं तुम कितना सितम करेगी ,
अब तेरा सितम सहा नहीं जाता .
तेरी हंसी मेरे खून में घूल गयी हैं ,
अब खून तो रोज़ -रोज़ बदला नहीं जाता .
तेरे रोज़ के इनकार से आजिज हो गया हूँ ,
तेरा रोज़ का बहाना अब सुना नहीं जाता .
तेरे हुस्न के जाल में इस तरह से फंस गया हूँ मैं ,
लाख कोसिसों से अब निकला नहीं जाता .
Copyright@Sankalp Mishra
अपने आशिक़ से तो रूठा ही नहीं जाता .
ये जवां हसीं तुम कितना सितम करेगी ,
अब तेरा सितम सहा नहीं जाता .
तेरी हंसी मेरे खून में घूल गयी हैं ,
अब खून तो रोज़ -रोज़ बदला नहीं जाता .
तेरे रोज़ के इनकार से आजिज हो गया हूँ ,
तेरा रोज़ का बहाना अब सुना नहीं जाता .
तेरे हुस्न के जाल में इस तरह से फंस गया हूँ मैं ,
लाख कोसिसों से अब निकला नहीं जाता .
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