तुम्हारे चेहरे पर यकीं करूँ या बातो पर ,
समझ नहीं आता ।
ये दुनियां हैं यहाँ काला और सफ़ेद ,
समझ नहीं आता ।
नादान तो हो , बालक नहीं हो
मार दूँ  या रहम करूँ ,
समझ नही आता ।
तुम्हारे रोके तो ये सफर रुकेगा नहीं ,
तुम्हारे गद्दारी की सजा क्या दूँ ,
समझ नहीं आता ।
तुम भूल कैसे गए कि मैं रावण हूँ ,
तुमने अंजाम क्यों नहीं सोचा ,
समझ नहीं आता ।

Copyright@Sankalp mishra

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