सत्ता ने सिखाया कि सामंतवाद से लड़ो ,
यही तुम्हारे दुश्मन हैं ,
तुम्हारी रोटी ,कपडे और मकान ,
ये छीन लेते हैं ,
और तुम बदहाल जीवन जीते हो ,
नक्सल बनो ,लूटो और न्याय पाओ ,
जनता नक्सल बनी ,
लूट हुई ,हत्याएँ हुई ,
महलों को तोडा गया ,
खड़ी फसलों को काटा गया ,
घरो को हथियाया गया ,
तथाकथित सामंतवादी भाग खड़े हुए ,
उन्होंने देश ,दुनियाँ छोड़ दी ,
कई साल बीत गए ,
जब सामंतवादी नहीं रहे  ,
फिर भी इनकी भूख ख़त्म नहीं हुई ,
फिर भी बदहाली कायम रही  ,
फिर  भी घर में रोटी नहीं।
तब सत्ता ने मुफ्त में अनाज देना शुरू किया ,
आरक्षण देना शुरू किया ,
अनुदान देना शुरू किया ,
बड़े -बड़े वादे करने शुरू किये ,
हसीन सपने बेचने शुरू किये ,
फिर भी बदहाली कायम रही  ,
फिर  भी घर में रोटी नहीं।
फिर सत्ता ने जाति का जहर घोला,
फिर धर्म का उन्माद फैलाया ,
और फिर भी बेरोजगारी दूर न हुई ,
काश ! काश की सत्ता सिखाती ,
कि कमाओ ,मेहनत करो ,
पसीना बहाओ ,
पढ़ो ,काबिल बनो।,
काश ! काश की सत्ता अब भी जाग जाए ,
काश जनता अब भी समझ जाए।
Copyright@Sankalp mishra

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