तुम्हे भूल जाऊँ कैसे , अब तुम ही बताओ ,
थोड़ी सी जान बची हैं , इसे भी ले जाओ ।
मतलब नहीं हैं इन किताबों का तुम्हारे बिना ,
कभी तो , कभी तो एक पन्ना पढ़ जाओ ।
मुझे नदी की चाह नहीं हैं, रेगिस्तान हूँ ,
बस एक दिन मूसलाधार बारिश हो जाए ।
मुझे जमानेभर की खुशिओं की चाहत नहीं ,
तुम्हे जीभर के देखने की तमन्ना पूरी हो जाए ।
Copyright@Sankalp mishra
थोड़ी सी जान बची हैं , इसे भी ले जाओ ।
मतलब नहीं हैं इन किताबों का तुम्हारे बिना ,
कभी तो , कभी तो एक पन्ना पढ़ जाओ ।
मुझे नदी की चाह नहीं हैं, रेगिस्तान हूँ ,
बस एक दिन मूसलाधार बारिश हो जाए ।
मुझे जमानेभर की खुशिओं की चाहत नहीं ,
तुम्हे जीभर के देखने की तमन्ना पूरी हो जाए ।
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