मैं क्या देखूं , क्या सुनूँ ,क्या सोचूं ,
ये अखबार बताता हैं ।
मैं अपने घर में क्या खाऊँ , क्या पकाउँ ,
ये जाहिलों का सरदार बताता हैं ।
जो मुल्क सुई से जहाज तक खरीदता हैं ,
वो जनता को राष्ट्रवाद पढ़ाता हैं ।
चाल- चरित्र- चेहरा लिए लडकियाँ उठवाता हैं ,
मगर समाज को संस्कार सिखाता हैं ।
कितना असहाय हैं मनुष्य देखों मेरे भाई ,
रोज लूटता हैं लेकिन वो सरकार बनाता हैं ।
प्रशासन क्रूर हैं , न्यायलय अंधी वो दर्द किसे सुनाये ,
जो रोज अपनी जर-जोरू-जमीन लूटवाता हैं ।
Copyright@Sankalp mishra
ये अखबार बताता हैं ।
मैं अपने घर में क्या खाऊँ , क्या पकाउँ ,
ये जाहिलों का सरदार बताता हैं ।
जो मुल्क सुई से जहाज तक खरीदता हैं ,
वो जनता को राष्ट्रवाद पढ़ाता हैं ।
चाल- चरित्र- चेहरा लिए लडकियाँ उठवाता हैं ,
मगर समाज को संस्कार सिखाता हैं ।
कितना असहाय हैं मनुष्य देखों मेरे भाई ,
रोज लूटता हैं लेकिन वो सरकार बनाता हैं ।
प्रशासन क्रूर हैं , न्यायलय अंधी वो दर्द किसे सुनाये ,
जो रोज अपनी जर-जोरू-जमीन लूटवाता हैं ।
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