अब हमे कविता नहीं क्रांति चाहिए

अब हमे कविता नहीं क्रांति चाहिए ,
बंद करो प्यार के गीत ,
दूर करो भ्रम ,
अब हमे अपने घरो में शांति चाहिए .
केरल में लूट गया मंदिर ,
शासन में देश नाकारा हो गया ,
अमीर हुए जाते है नेता ,
जनता लाचारी हो गयी ,
ख़त्म करो ये जनतंत्र का नाटक ,
अब हमे एक नयी व्यवथा चाहिए .
बच्चे घर में बिलखते है ,
औरते बाज़ार करती है ,
बेटियां नंगी घुमती है ,
गुंडे बालात्कार करते है ,
बंद करो अमेरिकबाद ,
अब हमे अपना भारत महान चाहिए.

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