आज मैं अधीर हूँ , तू कुछ न बोलो

आज मैं अधीर हूँ , तू कुछ न बोलो ,
रहस्य मेरा गहरा गया ,तू मौन हो लो .
आज उर चाहता है मृत्यु को मौन मित्र बनाना ,
आज उर चाहता है खुद में खो जाना ,
आज तू कोलाहल न कर ,तिमिर की छाया न बन ,
आज मैं अधीर हूँ , तू कुछ न बोलो.
सूर्य अब अस्त हुआ ,जा तू सो लो ,
प्रकाश प्रदीप्त नहीं होता ,मिथ्या न बोलो ,
आज मैं चाहता हूँ सूर्य को रन में हराना ,
या ओछे आंसुओ में डूब कर मर जाना ,
अब तू जा देर न कर ,अंधकार में कोई घर बना ले
इस कलुषित जग की कठपुतली बन न खेलो ,
आज मैं अधीर हूँ , तू कुछ न बोलो.
लोग अस्त-व्यस्त है जा तू संगीत खोजो ,
अभ्र अभी और गहराएगा ,तू सुरक्षित प्रदेश खोजो,
आज मैं भ्रमित ,नहीं ज्ञात कहाँ है जाना ,
तू भावना के पराधीन न बन ,कोई शक्ति खोज
तू बस मांस की ढेर न बन ,कोई उक्ति खोज ,
आज मैं अधीर हूँ , तू कुछ न बोलो.
समय की चाल है त्वरित , तू उसके संग हो ले
बहुत कंटक है राह , तू राह खुद टटोलो
मैं हार जाऊंगा जाने क्यों विश्वास मुझे ,
मैं मर जाऊँगा जाने क्यों अहसास मुझे ,
अब तू मेरी राह न देख ,कुछ और हो ले
तू सुंदर विरनी है कोई और राही टटोलो ,
आज मैं अधीर हूँ , तू कुछ न बोलो.

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