देह -दाह दमन
देह -दाह दमन
आखिर कब तक ?
छीज-छीज कर मरना पल-पल
आखिर कब तक यह दूरी ?
कब तक अलग रहेंगे
मोम कि तरह गलते हुए
आखिर कब तक ?
देखो झुक गया गगन ,
आह ! झुलस रहा बदन
तेज़ हुआ जाता धड़कन
रोको मत बहने दे मुझको
जंगल-जंगल उपवन-उपवन .
सावन बरस कर चला गया
बसंत भी मौन-मौन रहा ,
शरद में आसहा है देह-तपन
अब सहन नहीं होता देह-बाड बदन,
रोको मत अब बहने दे मुझे
हर क्षेत्र -बदन -उपवन,
रोको मत उर्जा को ,
सांसो को उन्मुक्त करो ,
बस बरस पड़ो अब
जंगल-जंगल उपवन-उपवन .
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