मेरा बल कहाँ है ?
मैं नित नयी राह ,नयी मंजिल बनता
अपने ही अंधकार से ,
अपने ही अहंकार से ,
अपने ही छदम व्यहार से ,
अपने दुर्बल स्वाभिमान से ,
विजय प्राप्ति के लिए
मैं नित नया कार्यक्रम ,नया संकल्प जगाता .
खुद की उर्जा पर बस नहीं मेरा ,
हर कमजोरी का मैं ही बसेरा ,
सब तूने दिया, सब है तेरा
पर बता
पुरुष का प्रचंड बल कहाँ है मेरा ?
आलस्य की जीवंत मूर्ति मून मै ,
कम हुए अपराध का क्षतिपूर्ति हूँ मैं
तूने कहाँ था मनुष्य दिव्य है,अनंत बल है
बता मेरे प्रबल संकल्प का संबल कहाँ है ?
मैं नित लज्जित खुद से ,
मेरा राह कहाँ है ,
तूने दिया था जो दिव्य वरदान ,
उसका प्रभाव कहाँ है ?
मैं रोज़ चलता दो मील दूर ,फिर लगता आ गया कितनी दूर
तूने दिया था नियमतता का मंत्र ,
बता तेरे नियमतता का आंचल कहाँ है ?
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