ब्रह्मण कि आत्मकथा


हम ब्राह्मण  हैं ,
जीते है राष्ट्र-उत्थान  के लिए,
एकता के लिए ,
समाज कल्याण के लिए ,
लड़ते है विषमताओं  से ,
रुढी  मान्यताओं से ,
चाणक्य की तरह .
हमे परतंत्रता पसंद नहीं ,
आजादी हमारा अधिकार है ,
आज़ादी के लिए जीते है
और आज़ादी के लिए मर जाते है ,
चन्द्रशेखर आज़ाद की तरह .
हम धर्म का अपमान नहीं सहते ,
बिगूल  बजा देते है विरोध का ,
तबाही मचा देते है ,
भूचाल ला देते है ,
मंगल पाण्डेय की तरह .
हम धर्म बांटते है ,
संस्कार बांटते है ,
श्रद्धा  बांटते है ,
पुजारी बन कर .
हम विनम्रता सिखाते है ,
झुकना सिखाते है सम्मान से,
दान देना सिखाते है ,
और घोर गरीबी में रह कर ,
खुश रहना सिखाते है ,
भिखारी बन कर .
हम ज्ञान देते है ,
गुण देते है ,
सामर्थ देते है ,
संस्कार देते है ,
समाज में सम्मान देते है ,
एक आचार्य बन कर .
हम राजा को राजनीति ,
दंडनीति ,कूटनीति
और जननीति सिखाते है ,
जनता को बैभव,
शांति ,सुख और धन
और भाईचारा के साथ रहना सिखाते है ,
वो विलासिता के साथ महलो में जीते है ,
और
हम अपने झोपडी में आनंदपूर्ण रहते है ,
क्यों कि
हम ब्राह्मण  हैं.
लेकिन आज हमसे हमारी
जाति छिनी जा रही है ,
हमारा सम्मान ,संस्कृति 
और जीविका छिनी जा रही है .
हमारे मंदिरों को लूटा जा रह हैं ,
और धर्म का क़त्ल किया जा रहा है .
क्या हम चुप बैठे ?
जब अत्याचार हो रहे है ,
जिम्मेदार हमे ठहराया जा रहा है ,
बोलो ?
हम ब्राह्मण  है
हमे लोगो की  रक्षा करनी है ,
और अत्याचारियो को भागना है.
बोलो ,जोर से बोलो
हमे अपना मार्ग नहीं छोड़ना ,
हमारा धर्म  है लड़ना ,
जनता के भले के लिए .
आरक्षण क्यों से 

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