बदली
ये अश्रु-कण की बदली तू घिर ,घिर और घिर
बन अवसाद -जल- कण गिर ,गिर और गिर
घोर तिमिर की रेखा न बन ,
उर के घुल-कण को तू गिला कर .
ये मटियाई हुई सी बदली
तू सूर्य-श्वेत-कण बन कर ,
बादल के गंभीरता को कम कर .
तू बेकाम ,घनघोर गंभीर न बन ,
बिजली-सी गिरने वाली ,
उर की तू तीर न बन .
ये राह -भटकी बदली ,
तू अनजान न बन ,
आ मेरे उर में बस .
तू बन हिरितामा जीवन की ,
मेरे आँगन में क्रीडा कर .
ये उमस पतझड़ से भागी बदली ,
तू घिर-घिर और घिर .
तू बन शीतलता धरा की ,तू गिर -गिर और गिर .
तू मार्ग प्रशस्त कर ,तू आशा की किरण बन
अवसाद ,निराशा जीवन की कम कर.
ये मुझसे रूठी हुई बदली ,तू घिर,घिर और घिर
अब तू देर न कर गिर,गिर और गिर ,
तू जीवन की घनघोर रहस्य न ,
अपने को सरल और सरल कर .
ये उर आँचल से दूर हुई बदली
तू प्रेम और दया से से तर कर .
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