वक्त अब बलिदान मांगता है
वक्त अब बलिदान मांगता है,
टूट गयी है कुर्सिया,
फूट गए है दर्पण,
साबुन ख़त्म हो गया है,
और झाड़ू नहीं लगा सालो से,
अब यह कमरा एक अदद कूड़ा -दान मांगता है,
वक्त अब बलिदान मांगता है.
खा-खाकर पेट फटा जा रहा,
सुनाई नहीं देता था पहले,
अब तो दिखाई भी नहीं देता,
सूंघ पाते नहीं खतरों को,
दोस्तों जनतंत्र अब इलाज मांगता है,
वक्त अब बलिदान मांगता है,
टूट गयी है कुर्सिया,
फूट गए है दर्पण,
साबुन ख़त्म हो गया है,
और झाड़ू नहीं लगा सालो से,
अब यह कमरा एक अदद कूड़ा -दान मांगता है,
वक्त अब बलिदान मांगता है.
जाति की लड़ाई,
संख्या के दम पर लोगो को दबाने की करवाई ,
मानव -अधिकार लूट जानना ,
देश अब बदलाव मांगता है,
वक्त अब बलिदान मांगता है,
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