मै क्या लिखूं ?
मै क्या लिखूं ,
मैंने तो गुनाहों का देवता पड़ा है ,
लैला-मजनू के किस्से सुने है,
गुडिया के यादो में खोया रहता हूँ,
मैंने तो कभी पड़ा नहीं,
काबुल के दस साल के बच्चे के आँखों को,
जिसमे बारूद छुपा है,
जिसकी नजरे जानती है केवल एक भाषा ,
मै कैसे कहूँ,
उन आँखों में आंसू नहीं होते,
आह नहीं होते,
सपने नहीं होते,
अपनी माँ ,एक औरत से प्यार नहीं होता ,
मै कैसे कल्पना करूँ उस बच्चे की ,
जिसके सामने उसकी माँ,बहन का ......
जिसके सामने उसके भाई का ,बाप का ........
और उन सारे लोगो
जिनको वो पहचानता था,
वो हुआ
जिसके बारे में वो कुछ नहीं जनता ,
बस याद है उसको वो चीखे ,दृश्य ,
जिसका अर्थ दस साल बाद समझ पायेगा ,
और
तब तक सिध्हस्त हो चूका होगा ,
हर हथियार को चलाने में,
मै क्या लिखूं उस किशोर लड़की के बारे में ,
जो नौ दिन भूखे भागती रही,
और
जब राहत कैंप पहुंची ,
पानी के बदले वीर्य पीती रही ,
अपने देह के थिनो छिद्रों से ,
और
जब रोटी की बारी आई ,
उसकी सांसे उससे रूठ गयी थी.
मेरे शब्द भागने लगते है ,
उस अस्सी साला बुडे के जिन्दगी से ,
जिसके छह बेटे
और चौदह पोते थे ,
वो सारे ,वो सारे
अमरीका देवता के भेट चढ़ गए.
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