मै दीपक हूँ
मै दीपक हूँ ,जलता हूँ धीरे- धीरे,
गलता जाता हूँ मोम की तरह ,
लेकिन मै उजाला नहीं फैलता हूँ,
मै अँधेरा बांटता हूँ .
मेरा उर में आग का गोला है ,
जिससे लगातार लपटे निकती है,
लेकिन वातावरण में गर्मी नहीं फैलती ,
एक बर्फीली लहर दौड़ती है.
मै हिमालय हूँ पत्थरो का,
जिसके शिखर की कोई सीमा नहीं,
लेकिन मै अपने वजूद के लिए चिंतित हूँ,
क्योंकि मौत कि सुनामी मुझसे लगातार टकराते है .
मै नदी हूँ बिन पानी का,
जिसमे कोई प्रवाह ,सतता नहीं,
मेरे घर में हमेशा धुल उड़ता है ,
क्योंकि सूरज से लगातार दुमानी चलती है.
मैं चिर पुरातन हार हूँ,
मेरे बगीचे में मुरझाये हुए बादाम है ,
क्योंकि मै हमेशा स्वय से लड़ता रहता हूँ,
और सामने वाला हमेशा जीत जाता है.
मै दीपक हूँ जलता हुआ ,
क्यों कि हमेशा मेरे घर में अँधेरा रहता है,
मै प्रयास कभी छोड़ता ,
क्योंकि मै जनता हूँ ,
अँधेरे जरुर हार जायेगा .
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