औरत

गुड़िया  ?
माँ ? बहन ? बेटी ?
पत्नी ? प्रेमिका ?
मर गयी .
पुलिस के हाथे चड़ी  या आत्महत्या करी ?
कोई तो कहता है
बिहार के साधुओ के हवाले हो गयी .
कोई कहता है अपहरण हो गया ,
कोई आयोग नहीं बैठा .
स्कूल गयी थी
घर नहीं आई
सहेलिओं ने कुछ नही देखा ,कुछ भी नहीं
कहाँ गयी ? किसी कोठे पर ?
या किसी नेता के कोठी पर ?
मेरी गुड़िया 
कितनी अच्छी कविता करती थी ,
वीर - रस की
वह तो श्रृंगार -रस जानती भी नहीं थी ,
लोग कहते है मुझसे
जब उसकी लाश मिली
उसके पेट में बच्चा था चार महीने का .
गुड़िया 
कितनी सुंदर थी वह
बाज़ार गयी थी सब्जी लेने ,
नहीं आई लौट कर ,
आयोग बैठा
अखबारे बिकती है उसकी खबर पर .
मैं नहीं रोता हूँ ,
क्योंकि लोग कहते है यह नियति है ,
यह जीवन है ,
यह संसार है ,
यह सत्य है
मैं क्यों नहीं समझता मुर्ख
हत्या ,बलात्कार ,घोटाला ,अपमान
हर अपराध एक नियति है .
गुड़िया  किसी कि नहीं ,उसका कोई नहीं
वह तो बनती है समाज के लिए
उसके गुलामी के लिए
उसके हवास पूर्ति के लिए .
मैं क्यों नहीं समझता मुर्ख
गुड़िया  का होना होना नहीं था ,
न ही संयोग था ,जो घटित हो गया खुद ही ,
वह तो रोज घटित होता है
शक्ल दूसरा होता है
नाम दूसरा होता है ,
जगह दूसरा होता है
मैं तो मानता हूँ गुड़िया  मरी नहीं ,
गुड़ियाएँ  मरती नहीं ,
वह तो बनती है कारखानों में ,
बेचीं जाती है बाजरो में ,
वह मुक्त है ,
स्वतंत्र है
इस असीमित संसार में .

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