रक्षाबंधन

हाथ में थाली,मिठाई ,अक्षत और रोड़ी लिए
खोज रही होगी मेरा बाट
जाता मै काश
दिखाती मुझे कोई नई राह
उत्पन करती जीने की चाह ,
देती मुझे अनंत उपदेश
पर मैं अभागा बैठा यहाँ परदेश
खोजता नदी तीरे उर्मियो को
उन बन्धनों को
जिससे बंधा था उसने
दिया था मुझे अथाह प्रेम
गहन रहस्य
अग्नि की पवित्रता
माँ का वस्तल्या
चाँद की शीतलता
और
माँगा था बस एक वचन रक्षा का .
कहा था रक्षाबंधन तो बहाना है
यह प्रतीक है पवित्रता का
प्रेम का
यह एक तरीका है
जिससे जीवन सुंदर बनता है .
वह खड़ी होगी दरवाजे पर
होगा उसको विस्वास मैं आऊंगा
देख रही होगी सपने
तैयार होगी सुनाने के लिए
एक कहानी
एक कबूतर था
एक साथी था उसका
सहसा एक दिन उसका साथी
नहीं आया खेलने
करके अठखेलिया
दिखने प्रेम
मुह चिड़ाने
फिर भोलेपन से पूछेगी
क्यों नहीं आया उसका साथी ?
और मैं मौन रहूँगा
क्योंकि ज्ञात है मुझे
ये भी चली जाएगी ससुराल
हम सबको छोड़ कर .

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