जीवन है पहेली ,युद्ध का मैदान भी
जीवन है पहेली ,युद्ध का मैदान भी,
विजेता होगा वही जो भावनाशुन्य शैतान भी.
राम-कृष्ण गाँधी अशोक सबका एक नारा ,
जीवन युद्ध है और विजय लक्ष्य भी.
पर वह मानुष क्या करे
जिसका अस्त्र ही भावुकता है ,
जिसका जाति,धर्म,गोत्र ही मानवता है ?
वह मानुष भी क्या करे ,
जो रक्त न बहा सकता है,
स्व पर हो रहे अत्याचार को,
मौन सह भी नहीं सकता है ?
एकलव्य का क्या होगा ,
क्या दिया समाज ने ,
प्रेम,श्रधा और गुरुभक्ति का,
क्या मिला परुस्कार में?
कब तक चलेगा जग ऐसे ,
कब तक रहेगी दोहरी नीति,
कब तक मरेगा कर्ण छल से,
कब तक चलेगी ऐसी सृष्टी ?
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