दलित की आत्मकथा
तब .........
हार सहे ,
तिरस्कार सहे,
मार सहे ,गाली की बौछार सहे ,
बुझते जलते अरमान सहे ,
चुप रहे ,हर दंड सहे .
पहले बीबी को भेजा ,
बेटी को भेजा ,
फिर बहु को ,
पहले बाप और अब मैं ,
तन और मन और मान
सब बेचा ,
सम्पति और शासन,
आबरू और ओज ,
आत्मा और आंसू ,
सच और झूठ ,
दिन -दिनभर काम किये ,
रात -रातभर सेवा ,
बीमारी की खरीदारी की ,
और मौत का सौदा ,
शून्य हुए
हस्ती से ,
गिरहस्थी से,
बस्ती से .
लेकिन अब ..........
शासन है ,
सामर्थ्य है ,
सत्य है ,
सुविधा है ,
सम्मान है ,
और संस्कार भी है ?
आज डंडा हमारे हाथ है ,
पीठ है उनकी ,
नौकरी हमारे हाथ है
शिक्षा है उनकी ,
दमन हमारे हाथ है
दासता है उनकी ,
दंभ हमारे हाथ में है
पराजय है उनकी ,
तलवार हमारे हाथ में है ,
संधि है उनकी ,
फैक्ट्री हमारे हाथ है
कारीगर है उनके ,
सम्पति हमारे हाथ है
मेहनत है उनकी,
मौज हमारे हाथ में है
मानसिक त्रासदी उनकी ,
रखैल हमारे घरो में है
बेटियां है उनकी ,
सत्य हमारे हाथ में है ,
और शब्द उनके .
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